Monday, January 5, 2015

और ग़ालिब का जश्न जारी है - अज़हर इनायती की एक ग़ज़ल


अब ये मेयार-ए-शहरयारी है
कौन कितना बड़ा मदारी है

हमने रोशन चिराग़ कर तो दिया
अब हवाओं की ज़िम्मेदारी है

उम्रभर सर बलन्द रखा है
ये जो अंदाज़-ए-इन्क्सारी है

सिर्फ बाहर नहीं महाज़ खुला
मेरे अन्दर भी जंग जारी है

इक मुसलसल सफ़र में रखता है
ये जो अंदाज़-ए-ताज़ाकारी है

मिट रही है यहाँ ज़बान-ओ-ग़ज़ल
और ग़ालिब का जश्न जारी है

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