अअब ये मेयार-ए-शहरयारी है
कौन कितना बड़ा मदारी है
हमने रोशन चिराग़ कर तो दिया
अब हवाओं की ज़िम्मेदारी है
उम्रभर सर बलन्द रखा है
ये जो अंदाज़-ए-इन्क्सारी है
सिर्फ बाहर नहीं महाज़ खुला
मेरे अन्दर भी जंग जारी है
इक मुसलसल सफ़र में रखता है
ये जो अंदाज़-ए-ताज़ाकारी है
मिट रही है यहाँ ज़बान-ओ-ग़ज़ल
और ग़ालिब का जश्न जारी है
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