Friday, January 23, 2015

तेनज़िन और उसके शरणार्थी फूल



जब से मनुष्य ने लिखना सीखा, उसने प्रकृति के बारे में लिखना शुरू किया. “ऑल आर्ट इज़ इमीटेशन ऑफ़ नेचर” के सिद्धांत को माननेवाले भी बहुतेरे रहे. फूलों की बाबत न जाने कितनी कविताएं लिखी गईं हैं दुनिया भर के साहित्य में. कभी उन्हें माशूका के चेहरे से मिलता जुलता बताया गया, कभी होंठों-आँखों से, कभी वे देवताओं के चरणों पर अर्पित हुए, कभी गार्सिया मार्केज़ के किसी उपन्यास में शोक की बारिश बनाकर बरसे. और फूल भी कैसे-कैसे, एक से एक नायाब रंगों, नामों वाले – गुलाब, कनेर, गुड़हल, गेंदा, कमल, बुरांश, कार्नेशन, मेंहंदी, चंपा, हरसिंगार, अमलतास, कचनार, बेला, जूही, शेफालिका, अगस्त्य, मालती, केतकी, राजनीगंधा ... सूची लम्बी है.

तेनज़िन त्सुन्दू तिब्बती कवि है. मेरा बहुत प्यारा दोस्त. तिब्बत की स्वाधीनता के लिए लड़ने वाला पूर्णकालिक एक्टिविस्ट. उसकी कई कविताएँ आपको कबाड़खाने पर पढ़ने को मिल जाएँगी. उसका लिखा जो भी कुछ छपा है और उपलब्ध है, मैंने बहुत चाव से पढ़ा है और उसके वह होने पर हैरत की है जो वह है. अभी चार माह पहले वह मेरे घर मेरे साथ कोई सप्ताह भर रहा, मेरी हैरत कम नहीं हुई. जीवन की छोटी-छोटी चीज़ों को लेकर उसकी ललक अथाह है और वह अपनी बालसुलभ उत्सुकता से कभी कभी आपको विस्मित करता है. यह अलग बात है कि भारत और चीन की पुलिस उसे बाकायदा गिरफ्तार करती रही है और उसे व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने वाला एक “खतरनाक” आदमी माना जाता है.

अभी कुछ दिन हुए उसने अपनी फेसबुक  वॉल पर जो लिखा उसे अनूदित कर आपके सामने रख रहा हूँ क्योंकि ऐसा वही लिख सकता है. सलाम तेनज़िन मेरे दोस्त!–


इस फूल के बारे में मुझे अभी अभी कई चीज़ें पता लगी हैं; इस फूल के बारे में जो मेरे साथ शरणार्थी शिविरों, पहले स्कूल, पहले कॉलेज और फिर विश्वविद्यालय तक लगातार मेरे साथ रहा और जिसका मुझे नाम तक मालूम नहीं था.


ये हैं विन्का के फूल. यूरोप और भूमध्यसागरीय इलाकों के मूल निवासी इन फूलों को आज दुनिया भर में पाया जाता है. चूंकि यह साल भर फूलता है, भारत में इसे सदाबहार का नाम मिला. व्यक्तिगत रूप से मुझे दक्षिण भारत के शरणार्थी शिविरों में देखे गए सिर्फ इसी फूल की याद है. इससे आकर्षित होकर सांप बांस की फेन्सों और दीवारों की दरारों से होकर आ जाते थे, इस आरोप में जड़ से उखाड़ कर फेंक दिए जाने के बावजूद यह जिद की तरह खिलना जारी रखता था (इसी कारण इसे स्नेक फ्लावर भी कहते हैं). विन्का के फूल गुलाबी, बैगनी और सफ़ेद भी हो सकते हैं लेकिन घुटनों-घुटनों तक की ऊंचाई वाली इनकी झाड़ियों के चमकदार पत्ते हर जगह एक से होते हैं. मुझे अब मालूम चला है कि इस फूल से निकाले गए कुछ सत्त कैंसर की दवाइयों में इस्तेमाल होते हैं. ये फूल अपने ही जैसे दिखने वाले पेरीविन्कल के रिश्तेदार भी हैं, अलबत्ता पेरीविन्कल की बेल हुआ करती है. 

निर्वासन में रह रही तिब्बतियों की दूसरी पीढ़ी के पास तिब्बत की कोई याद नहीं जिसे लेकर वे उदास हो सकें. इस नॉस्टेलजिया का निर्माण कुछ कहानियों की मदद से करते हैं जिनमें गायों के बीच बड़े होने की याद, इडली-सांभर की इच्छा, लम्बी बस यात्राएं, दादाजी का फिलिप्स रेडियो और सबसे ऊपर इस फूल की याद शामिल होती है, जिसका नाम कोई नहीं जानता था.

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