Monday, February 16, 2015

जेएनयू में प्रोफेसर तुलसीराम की याद

प्रोफेसर तुलसीराम की स्मृति में जेएनयू में हुए एक कार्यक्रम में लगाए गए  पोस्टर. उनकी श्रद्धांजलि के तौर पर यहाँ लगाई गयी एक पोस्ट से कबाड़ी अनिल यादव के शब्द एक पोस्टर पर देखे जा सकते हैं. फ़ोटो के लिए कबाड़ी दिलीप मंडल का आभार.  
(बड़ा करके देखने के लिए फ़ोटो पर क्लिक करें)
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प्रोफ़ेसर तुलसी राम 
वर्ष 1949 में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के चिरैयाकोट में एक दलित परिवार में पैदा हुए तुलसी राम ने आगे की पढ़ाई के लिए पहले गांव छोड़ा और आज़मगढ़ पहुंचे. उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वो वाराणसी पहुंचे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में दाखिला लिया. यहीं पर वो कम्युनिस्ट राजनीति के सम्पर्क में आए और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर काम करने लगे. घर से बीएचयू तक का सफ़र तय करने में उन्हें कई कई दिनों तक भूखे रहना पड़ा और भयंकर अभावों से गुजरना पड़ा और सामाजिक अपमान का दंश झेलना पड़ा. उन्होंने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी. बाद में यहीं स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर हो गए.

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंध पर 'आइडियॉलॉजी इन सोवियत-ईरान रिलेशन्स: लेनिन टू स्टालिन' नाम की किताब लिखी थी. इसके अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर कई पुस्तकें लिखीं लेकिन उनकी आत्मकथा सबसे अधिक चर्चित रही. आत्मकथा के दो खंडों 'मणिकर्णिका' और 'मुर्दहिया' में उन्होंने हिंदी पट्टी में दलित समाज के हालात का जिस बारीक़ी से वर्णन किया है वो हिंदी और ख़ासकर दलित साहित्य की अमूल्य निधि है.


1 comment:

Unknown said...

this has a value in Indian Society