Monday, February 23, 2015

आधी रात के गजर के साथ जोगियों में बदल जाते हैं सांप

 
अपनी बेटी के साथ प्रशांत चक्रबर्ती 
प्रशांत चक्रबर्ती बेहतरीन इंसान हैं. और मेरे मित्र.

दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में पढ़ाते हैं और मार्ग-ह्युमैनिटीज़ के सह-संस्थापक हैं. हाल ही में ध्यानबिन्दु, कोलकाता से उनकी कविताओं का पहला संग्रह आया है – ‘रूल्स ऑफ़ द गेम’. अभी उनका सिर्फ इतना ही परिचय. उनके बारे बाकी बाद में धीरे-धीरे.

आज से शुरू करता हूँ इसी संग्रह से उनकी कविताओं के अनुवादों की श्रृंखला. 

1.

औदार्य

-प्रशांत चक्रबर्ती

अलस्सुबह के सपनों में
मेरे सिर के भीतर
जाग जाते हैं सांप
और दूध मांगते हैं

दोपहर तक, वे नज़दीक रेंग आते हैं मेरे माथे के
मेरी भंवों के बीच, निस्तेज
बेरोकटोक संभोग करते हैं, डाले हुए
मेरी आँखों में अपनी आँखें

सूर्यास्त के साथ, शैतानों सरीखे वे
चोट करने लगते हैं मेरी कनपटियों पर, दुतरफ़ा दम घोंटते  
सरसराते हुए प्रतिहिंसा

आधी रात के गजर के साथ उतरता है विनय
जब धरती पर भटकते हैं ठग, छलिये, दुनियावी पशु
जोगियों में बदल जाते हैं सांप. 

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