Tuesday, March 24, 2015

इस पानी में हम नहीं देखेंगे अपने चेहरे - अरुंधती घोष की कविता - 4


सहधर्मी

ऐसा कहा था तुमने, सात फेरों में -
गैरज़रूरी सवाल पूछे नहीं मैंने,
खुदकशी करते रहे पेड़ सारी रात, एक के बाद एक

एक निश्शब्द तालाब है शब्दों के दरम्यान
हम नहीं उतरे पानी में
लहरें टूटा करती हैं किनारे पर
चक्कर काटते बुलबुले उठते हैं
डूबती हुई एक सीढ़ी
पुकार लगाती है ...
हम दोनों चुप
इस पानी में हम नहीं देखेंगे अपने चेहरे

झुकती जाती है बालकनी,
मग़रूर रोशनी
निगलती जा रही है तमाम पत्तों का हरा

और हर कोई है
उसी जगह जहां वह था

वहीं हम भी.

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