Monday, March 23, 2015

रीपोस्ट - यह निशानी मिली भगतसिंह को भोजन कराने की

सरदार हरभंस सिंह

फ़िरोज़पुर शहर के देहाड़ियागाँव में रहनेवाले ९६ वर्षीय सरदार हरभंस सिंह छोटे से घर में भरे-पूरे परिवार के साथ गुज़र-बसर करते हैं. १९४७ से पहले हरभंस लाहौर से आठ मील दूर बांकड़ियागाँव में रहते थे. शहीद भगतसिंह का परिचय दो मील दूरी के काछा गाँव के भोला सिंह नम्बरदार ने इनके परिवार से कराया था. यह घटना १९२७ की है. तबसे भगतसिंह अक्सर इनके यहाँ आया करते थे और भोजन कराने का काम हरभंस किया करते थे. इनकी उम्र उस वक़्त तकरीबन तेरह-चौदह साल की होगी. यह सिलसिला १९२९ तक चला. “खबर थी कि ब्रितानी पुलिस गाँव पहुँच गयी. हमने भगतसिंह से भाग जाने को कहा. पुलिस के दबाव में आकर हमारे नौकर बशीर ने मेरा नाम बता दिया. बस पुलिस ने धर दबोचा और उलटा लेटा कर मारा. आज भी मेरे दाहिने हाथ की उंगलियाँ टेढ़ी हैं और किसी काम की नहीं. यह निशानी मिली भगतसिंह को भोजन कराने की.”

२२ मार्च १९३१ को लाहौर जेल में भगतसिंह की माँ-बहन और बड़े भाई के साथ हुई. “ये लोग मुझे अपने साथ लाहौर जेल मिलवाले ले गए थे. दोपहर के १२:३० बजे हम सभी लाहौर जेल की डायरी में दर्ज किये गए थे. भगतसिंह के चेहरे पर मुस्कान थी. उसी मुस्कान के साथ हम लौटे.”


“१९४७ की घटना ने हमें बांकड़ियागाँव छोड़ने पर विवश किया. स्वतंत्रता सेनानी के लिए अर्जी कभी नहीं दी.”

(मुम्बई से निकलने वाली पत्रिका 'चिंतन दिशा' के ताज़ा अंक में छपी गोपाल नायडू की यात्रा डायरी से साभार) 

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