Wednesday, March 25, 2015

इसी तरह अपना प्रतिशोध लेते हैं पेड़ हर रात - अरुंधती घोष की कविता - 5

पिकासो की कृति 'गर्ल बिफ़ोर अ मिरर'

प्रतिशोध

एक दिन, रात की गहराई में वे घरों से बुलाएंगे हमें 
गर्द और धुएं में, उस राजमार्ग पर, ट्रकों की उस कतार की बगल में, खड़ी हो जाऊंगी जाकर.
आसमान की तरफ पसार दूंगी बाँहें
खोदूंगी कोलतार में एक गड्ढा, पिंडलियों तलक धंसा लूंगी अपने पैर 
सिर से कमर तक उगेंगी छायाएं
धीरे-धीरे खुलते जाएंगे वस्त्र
चमड़ी का रंग होता जाएगा भूरा, हरा, काला
आसमान को देखूंगी आँखें उठाकर
नन्हे कीड़े मकोड़ों से भर जाएगी समूची छाती
एक भी सितारा नहीं होगा आसमान में उस रात
योनि से बूँद-बूँद टपक गिरना शुरू करेगा एक उर्वर रस
टांगों पर रेंगता चढ़ता जाएगा एक सांप और शरण लेगा नाभि में
जब तक वह नीचे उतरेगा, कुछ चिड़ियाँ आ कर कन्धों पर बैठ गयी होंगी
लेकर आएंगी वे भूसा और नन्हे तिनके
सूरज चढ़ेगा, नगर के लोग शुरू करेंगे अपना दिन
किसी का ध्यान नहीं जाएगा सड़क किनारे उग आया है एक और पेड़

एक दिन भोर से समय, मैं भी बन जाऊंगी एक पेड़
इसी तरह अपना प्रतिशोध लेते हैं पेड़ हर रात

वे ज़रूर बुलाएंगे घर से मुझे एक दिन

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