कुमार गन्धर्व जी के स्वर में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछिन्दरनाथ) का एक भजन -
शून्य गढ़ शहर शहर घर बस्ती कौन सूता कौन जागे है
लाल हमरे हम लालान के तन सोता ब्रह्म जागे है
जल बिच कमल कमल बिच कलिया भँवर बास न लेता है
इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है
तन की कुण्डी मन का सोटा ज्ञानकी रगड लगाता है
पांच पचीस बसे घट भीतर उनकू घोट पिलाता है
लाल हमरे हम लालान के तन सोता ब्रह्म जागे है
जल बिच कमल कमल बिच कलिया भँवर बास न लेता है
इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है
तन की कुण्डी मन का सोटा ज्ञानकी रगड लगाता है
पांच पचीस बसे घट भीतर उनकू घोट पिलाता है
अगन कुण्ड से तपसी तापे तपसी तपसा करता है
पाँचों चेला फिरे अकेला अलख अलख कर जपता है
एक अप्सरा सामें उभी जी, दूजी सूरमा हो सारे है
तीसरी रम्भा सेज बिछावे परण्या नहीं कुँवारी है
परण्या पहिले पुत्तुर जाया मात पिता मन भाया है
शरण मच्छिन्दर गोरख बोले एक अखण्डी ध्याया है
1 comment:
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