Tuesday, February 2, 2016

धरमेंदर और गद्दार की खोपड़ी - पिक्चर के किस्से - 1


पिक्चर के किस्से - 1

नाहिद में 'यादों की बारात' लगी थी. जमाने के टाइम के तकाज़े के हिसाब से हम चार दोस्त जीनातमान के जलवे और धरमेंदर की जन्मजात हौकलेटपंथी देखने के उद्देश्य से सेकंड क्लास की सबसे आगे की सीटों पर काबिज़ थे. टिकट पांच लिए थे पर नब्बू के नहीं आ सका था. हममें से सबसे स्याने मुरुगन उस्ताज ने पांचवां टिकट ब्लैक में निकाल लेने में सफलता हासिल कर ली थी. पिक्चर शुरू होने तक वह महात्मा नहीं आये थे जिन्हें मुरुगन ने टिकट बेचा था.

पन्द्रह मिनट बाद ठीकठाक डीलडौल वाला एक साया मेरे बगल वाली ब्लैक सीट पर बैठा और बैठने के दस ही सेकंड के भीतर मुंह पर गमछा डालकर बाकायदा सो गया. एक मिनट बाद खर्राटे शुरू हो गए. मैं थोड़ी देर को असमंजस में आ गया लेकिन जीनातमान के जलवे उस असमंजस पर भारी पड़े. मेरा ध्यान तब टूटा जब उस साए ने गमछा अपने मुंह से हटाकर मुझसे फुसफुसाते हुए पूछा - "धरमेंदर ने शेट्टिया की खोपड़ी फोड़ दी क्या?" मेरे ना कहने पर वह फिर निद्रालीन हो गया.

इंटरवल हुआ पर वह सोया रहा. मरियल पीली रोशनी में वह वाकई पहलवान टाइप का लग रहा था. मूमफली, पपन करारे और ठंडी कोल्डींग बेचनेवालों की पुकारें भी उसके मुंह से गमछा न उठवा सकीं. हम चारों दोस्तों ने बाहर सिगरेट का लुत्फ़ लेते हुए गमछाधारी के बारे में एकाध मज़ाक किये. हॉल के भीतर उसका मज़ाक उड़ा सकने की हमारी हिम्मत नहीं थी क्योंकि हम चार मिलकर उसकी एक जांघ के बराबर नहीं बैठते थे.

कोई एक घंटे की खर्राटापूरित नींद बाद गमछा फिर से हटा और फुसफुसाते हुए पहलवान ने पूछा - "धरमेंदर ने शेट्टिया की खोपड़ी फोड़ दी क्या?"

मैंने हाँ जैसा कुछ कहा.

"हट साला. वही तो देखना था."

पहलवान ने खीझते हुए ज़मीन पर ख़ूब सारा थूकते हुए हॉल के बाहर का रुख किया.


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