Wednesday, February 10, 2016

मजाज़ और मजाज़ - 12

(पिछली क़िस्त से आगे)


11.

मजाज़ ने एक साहित्यिक महिला को अपनी शायरी के बारे में राय देते हुए बताया - "मैं डिक्शन का मास्टर हूँ."

"तो फिर जोश मलीहाबादी क्या हैं?" उस ख़ातून ने महज़ दिल्लगी की ख़ातिर मजाज़ से सवाल किया.

"डिक्शनरी के मास्टर.!"


12.
एक मुशायरे में मजाज़ जब अपनी नीम बदहवासी के आलम में भी अपनी नज़्म - 

बोल अरी ओ धरती बोल
राज-सिंहासन डावांडोल

निहायत ठाट-बाट और तमतराक़ से पढ़ चुके तो उन्हें हंसराज रहबर ने छेड़ते हुए पूछा -

"मजाज़ भाई! क्या ये नज़्म तुमने शराब पीकर कही थी?"

"बल्कि कहने के बाद भी पी थी." - मजाज़ ने तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया.

13.
मजाज़ और फ़िराक़ के दरम्यान काफ़ी संजीदा गुफ़्तगू हो रही थी. एकदम फ़िराक़ का लहज़ा बदला और उन्होंने हंसते हुए पूछा - "मजाज़! तुमने कवाब बेचने क्यों बंद कर दिए."

"आपके यहाँ से गोश्त आना बंद जो हो गया." मजाज़ ने उसी संजीदगी से जवाब दिया.

14.
एक महशूर शाइर ने मजाज़ से पूछा -

"मेरी समझ में नहीं आता कि तुमने शेर कहना क्यों छोड़ दिया."

मजाज़ ने परेशान सा होकर कहा -

"और मेरी समझ में नहीं आता कि आप बराबर क्यों शेर कहे जा रहे हैं."

15.
बंबई के एक जलसे में मुल्कराज आनन्द बहुत लम्बी-चौड़ी तक़रीर शुरू कर दी. उस जलसे में मजाज़ भी मौजूद थे और तक़रीर सुनते-सुनते काफ़ी बेज़ार हो गए थे. आनन्द की तक़रीर के बाद मजरूह सुल्तानपुरी से ग़ज़ल सुनाने की फरमाइश की गयी और मजरूह ने अपनी रसीली आवाज़ में अपनी वह मशहूर ग़ज़ल सुनाई -

जो समझाते भी आकर वाइज़-ए-बरहम तो क्या कहते
हम इस दुनिया के आगे उस जहां का ग़म तो क्या करते

लेकिन नज्रूह की खुश उलहानी भी मजाज़ के जेहन की फ़िज़ा को पूरे तौर पर न बदल सकी और ग़ज़ल ख़त्म होने के बाद वह तड़पकर माइक से सामने आकर बोले -

यहाँ तो मुल्कराज आनंद ही ने बोर कर डाला
अगर ऐसे में होते क़ायद-ए-आज़म तो क्या करते!

(जारी)

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