नज़ीर अकबराबादी का बसंत -3
करके बसंती लिबास सबसे बरस दिन के दिन
यार मिला आन कर हमसे बरस दिन के दिन
खेत पै सरसों के जा, जाम सुराही मंगा
दिल की निकाली मियाँ! हमने हविस दिन के दिन
सबकी निगाहों में दी ऐश की सरसों खिला
साकी ने क्या ही लिया वाह यह जस दिन के दिन
खल्क में शोर-ए-बसंत यों तो बहुत दिन से था
हमने तो लूटी बहार ऐश की बस दिन के दिन
आगे तो फिरता रहा ग़ैरों में हो ज़र्द पोश
हमसे मिला पर वह शोख़ खाके तरस दिन के दिन
गरचे यह त्यौहार की पहली खुशी है ज़्यादः
ऐन जो रस है सो वह निकले है रस दिन के दिन
लूटेगा फिर साल भर गुलबदनों की बहार
लूटेगा फिर साल भर गुलबदनों की बहार
यार से मिलते नज़ीर आज बरस दिन
के दिन
1 comment:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 03 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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