ये सच की आवाज है जो जनता के सवाल को तरन्नुम में उठा रही है। असली आजादी की तड़प में थिरक रही है। ये आवाज यातना से नहीं डरती! इस आवाज को गोली नहीं मारी जा सकती! इस आवाज को कैद नहीं किया जा सकता! ये बस्सियों के तुम्हारे सामने मिमियाने और जनता के सामने गुर्राने की आवाज नहीं है, इसलिए ये आवाज बहुत खूबसूरत है! ये आवाज देर से उठी है लेकिन बहुत दूर तलक पहुंच रही है! अपनी कुर्सी, पगड़ी और सूट संभालो सत्ताधीशों!
(उमाशंकर सिंह की फेसबुक वॉल से साभार)
2 comments:
अपनी कुर्सी, पगड़ी और सूट संभालो सत्ताधीशों! सचमुच.
Ashok Bhai:
You have chosen a horribly wrong picture while making your point.
A 29 yr old lumpen who shows his genitals to a senior lady colleague as a tool of protest doesn't deserve to be a poster-boy or cult-motif in your discourse.
A community of students and teachers that elect, promote, and harbour such opportunistic manipulators cannot claim to represent progressive thought and modern sensibility. Whatever be the ranking of their university. In fact, ranking is just a SMOKESCREEN for these modern THUGS. They are abusing Marxism as a toy of titillation.
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