Monday, March 21, 2016

होली है सनम, हँस के तो इक आन इधर देख

नज़ीर अकबराबादी की होली -


मिलने का तेरे रखते हैं हम ध्यान इधर देख
भाती है बहुत हमको तेरी आन इधर देख
हम चाहने वाले हैं तेरे जान  इधर देख
होली है सनम, हँस के तो इक आन इधर देख
ऐ  रंग भरे नौ - ग़ुले - खंदान इधर देख

हम देखने तेरा यह जमाल इस घड़ी ऐ जान
आये हैं यही करके ख्याल इस घड़ी ऐ जान
तू दिल में न रख हमसे मलाल इस घड़ी ऐ जान
मुखड़े पे तेरे देख गुलाल इस घड़ी ऐ जान
होली भी यही कहती है ऐ जान  इधर देख

है धूम से होली के कहीं शोर , कहीं गुल
होता नहीं टुक रंग छिड़कने में तअम्मुल
दफ़ बजते हैं सब हँसते हैं और धूम है बिल्कुल
होली की खुशी में तू न कर हमसे तग़ाफुल
ऐ जान  हमारा भी कहा कहा मान इधर देख

है दीद की हर आन तलब दिल को हमारे
जीते हैं फ़क़त तेरी निगाहों के सहारे
हर याँ जो खड़े आन के इस शौक़ के मारे
हम एक निगाह के तेरे मुश्ताक हैं प्यारे
टुक प्यार की नजरों से मेरी जान  इधर देख

हर चार तरफ होली की धूमें हैं अहा  हा
देखो जिधर आता है नजर रोज़ तमाशा
हर आन चमकता है अज़ब ऐश का चर्चा
होली को 'नज़ीर' अब तू खड़ा देखे है यां क्या
महबूब यह आया, अरे नादान इधर देख

[नौ-ग़ुले-खंदान = नए फूल जैसी मुस्कान वाले (वाली), तअम्मुल = सोच विचार, तग़ाफुल = देर , विलम्ब , मुश्ताक =अभिलाषी, उत्सुक]


No comments: