Wednesday, March 2, 2016

अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी


ऐ तन मेरा चश्मा होवे, मैं मुर्शिद वेखण रै जाऊं 

आज से कुछ समय पहले मैंने मीशा शफ़ी और आरिफ़ लोहार के स्वरों में इस पुरानी रचना को पेश किया था. इसी का एक बिलकुल अलग संस्करण सुनिए  बाबा नुसरत की आवाज़ में. एक और दुर्लभ पेशकश. कबाड़खाना एक्सक्लूसिव -

1 comment:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहतरीन.....बहुत बहुत बधाई.....