संजय चतुर्वेदी की यह
कविता बहुत लम्बे समय तक कबाड़खाने के मास्ट पर लगती रही है. आज उन्होंने अपनी
फेसबुक वॉल पर इसे पोस्ट किया सो एक बार फिर आपके वास्ते –
अलपकाल बिद्या सब आई
- संजय चतुर्वेदी
ऐसी परगति निज कुल घालक
काले धन के मार बजीफा हम कल्चर के पालक
एक सखी सतगुरु पै थूकै एक बनी संचालक
अलपकाल बिद्या सब आई बीर भए सब बालक
काले धन के मार बजीफा हम कल्चर के पालक
एक सखी सतगुरु पै थूकै एक बनी संचालक
अलपकाल बिद्या सब आई बीर भए सब बालक
(2005)
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