चलो चलते
-वीरेन डंगवाल
जो भी जाता
कुछ देर मुझे नयनों में भर लेता जाता
मैं घबड़ाता हूं.
अरे बाबा, चलो आगे बढ़ो
सांस लेने दो मुझको....
¨
है बहुत ही कठिन जीवन बड़ा ही है कठिन
चलते चलो चलते.
वन घना है
बहुल बाधाओं भरा यह रास्ता सुनसान
भयानक कथाओं से भरा
सभी जो हो रहीं साकार :
'गहन है यह अन्धकारा... अड़ी है दीवार जड़
की घेर कर,
लोग यों मिलते कि ज्यों मुंह फेर कर...'
पर क्या तुझे दरकार
तेरे पास तो हैं भरी पूरी यादगाहें
और स्वप्नों - कल्पनाओं - वास्तविकताओं का
विपुल संसार,
फिर यह यातना!
जीवित मात्र रहने की
कठिन कोशिश
उसे रक्खो बनाए
और चलते चलो चलते.
1 comment:
बहुत सुन्दर..
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