एन.ई.ए.
के 2015 फैलो और पोयट्री फाउन्डेशन की रूथ लिली फ़ैलोशिप के फाइनलिस्ट सैम साक्स
मिशनर सेंटर फॉर राइटर्स में भी पोयट्री फैलो हैं और बैट सिटी रिव्यू के मुख्य
सम्पादक के रूप में काम करते हैं. उनकी प्रकाशित चैपबुक्स के नाम हैं - अ गाइड टू
अनड्रेसिंग योर मॉन्स्टर्स (2014) सैड बॉय/डिटेक्टिव (2015)और ऑल द रेज (2016). पेश है उनकी एक कविता -
सैम साक्स |
मजदूर
दिवस
-
सैम साक्स
(हियु
मिन्ह न्गुयेन के लिए)
मैंने
चीज़ों को समझाने के लिए इतिहास का सहारा लिया और यह मेरी पहली ग़लती थी
जब
मैं कहता हूँ इतिहास तो मेरा मतलब होता है वह पत्थर
जो सड़क किनारे आधा गड़ा हुआ देख चुका
उससे
ज़्यादा त्रासदियाँ जितनी देखता है
पानी
का एक गिलास. मैं पानी को देखता हूँ
लेकिन
मुझे फ़क़त धूल दिखाई देती है. मैं धूल को देखता हूँ
और
वहां फ़क़त इतिहास है. बुनियादी ढाँचे की एक
टुकड़ा पीठ पर
मज़दूर
आन्दोलन की बाबत लिखने के लिए यहाँ एक पंख है
और
खून का एक कुआँ. यहाँ एक बाप है जो
अपने
नंगे हाथों से रेलवे लाइन बनाने को अपने घर से जा रहा है. लिखो उन कानूनों को
जो
उल्लुओं की आँखें नोंच लेते हैं, जो नदी और प्यासे के दरम्यान
दीवार
बना देते हैं, जो परिवारों को एक नरक से खींचकर
दूसरे
में डाल देते हैं. उफ़, आदमियों का बनाया
यह
मेरा घर, उफ़, मैं - एक शख्स जो कभी-कभी गुज़रता है इसकी
तेज़ाब-कोठरियों
से और पिछले दरवाज़े की धूल से
होता
बाहर निकल जाता है. जब मैं कहता हूँ इतिहास तो
मेरा
मतलब होता है उस से जो रहता है हमारे भीतर,
मेरा
मतलब अपनी गरदन में पड़ी नकली सोने की चेन से होता है,
उस
बीमारी से जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती है
ईसामसीह
के पहले से समय से, मेरा मतलब उस शब्द से है
जिसकी
उत्पत्ति पानी की भीख मांग रहे एक लड़के में होती है.
(2016)
(2016)
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