हकीकत कोई नंगई तो नहीं है
-रमाशंकर यादव विद्रोही
हकीकत कोई नंगई तो नहीं है
हकीकत किसी की फजीहत नहीं है
हकीकत वही है जो खुद रास आये
हकीकत किसी की नसीहत नहीं है
और हकीकत की वारिस है खुद ही हकीकत
हकीकत किसी की वसीयत नहीं है
और हकीकत वही है जो मैं कह रहा हूँ
और जो मैं कह रहा हूँ
यहीं कह रहा हूँ
कि अभी दाब दूँ तो जमीं चीख देगी
और अभी तान दूँ तो गगन फाट जाये
मगर आदमी का फरज ये नहीं है
फरज है
कि छप्पर गिरे तो उठाये
इसी के लिए
हाँ इसी के लिए तो
अमीना का छप्पर
और हामिद की खपरैल
और सालिक की शादी
कि मालिक की तेरही
कि बैजू की बीबी
कि सरजू की रखैल
सभी के लिए
हाँ सभी के लिए
तो सभी के लिए
इक वतन चाहिए ही
ये कमबख्त हैं
इसमें अब शक कहाँ है
मगर अब मर गए
तो कफ़न चाहिए ही
और आज से
इक कफ़न ही है झंडा मेरा
मैं हरिश्चंद्र के बाप का बाप हूँ
मैं वही बीज हूँ, जो, जमा आदि में
मैं वही फल हूँ, फलता है, जो अंत में
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