कवि-अनुवादक
भाई यादवेन्द्र पाण्डेय ने मेल पर मुझे यह अनूदित कविता भेजी है. कवि के दिलचस्प
परिचय के साथ. उनकी मेल जस की तस और मैरी रुफ्ले की कविता.
कोई
एक हफ़्ते पहले महत्वपूर्ण अमेरिकी कवि मेरी रुफ्ले की कविता से पहचान हुई और मैं
उनके विषय वैविध्य, खिलंदड़पन और कौतुक से बेहद
प्रभावित हुआ. 1952 में जन्मी मेरी फौजी पिता के साथ बचपन
में अमेरिका और यूरोप में खूब घूमी हैं और बाद में एक अमेरिकी विश्व विद्यालय में
प्रोफेसर हो गईं. फ्री वर्स शैली में लिखी उनकी कविताएं मज़ाकिया से लेकर गम्भीर
कटाक्ष और घरेलू से लेकर आक्रामक तेवर अपनाती हैं.
इस धरती पर
मुझे समझ नहीं आता कैसे छुऊँ चीज़ों को
इतनी अनछुई और कच्ची है धरती...
एक
समीक्षक ने मेरी रुफ्ले के बारे में लिखा है: "उनके सजग,नापे तोले हुए वाक्य पढ़ते हुए ऐसे लगते हैं
जैसे हज़ार साल वाले किसी इंसान ने लिखे हों जो अब भी बच्चों जैसी उत्सुकता से
आँखें फाड़ फाड़ कर दुनिया को निहार रहा हो."
कवि के लगभग एक दर्जन कविता संकलन
प्रकाशित और चर्चित पुरस्कृत हैं. मुझे
पसंद उनकी 'द पेरिस रिव्यू' में
प्रकाशित एक गद्य कविता यहाँ प्रस्तुत है.- यादवेन्द्र पाण्डेय
मिल्क शेक
- मेरी रुफ्ले
(अनुवाद
- यादवेन्द्र पाण्डेय)
मैं अकेली कभी नहीं होती ,न ही बोर होती हूँ सिवा इसके कि मैं ख़ुद को बोर न करूँ --
मेरे लिए अकेलेपन की यही परिभाषा
है और बोरियत की भी.
यह बोरियत ऐसी होती है कि पूरे
शरीर को बोर कर डालती है.
आज मैं बहुत बोर हो रही हूँ और
निपट अकेला भी महसूस कर रही हूँ .....
दिमाग बहुत दौड़ाने के बाद जब मुझे
और कुछ नहीं समझ आया
तो मैंने नमक और काली मिर्च की बुकनी
बना डाली और मिल्क शेक में डाल कर मिला ली.
यह काम वैसे मैं जब तेरह बरस की
थी तब से करती आ रही हूँ
वह पुराना ज़माना था और तब तेरह की
उम्र ख़ास होती थी
उसपर वैसे सोना मढ़ा जाता था जैसे
समझो ऑटोमन साम्राज्य की बात हो.
वैसे रस्मी तौर पर तेरह का अंक अशुभ
माना जाता है
जब तेरह साल की थी तब चलते फिरते
मुझे शऊर नहीं था
कि अकेलापन क्या होता है और
बोरियत किस बला का नाम होता है.
एक दिन मैं अपनी सहेली विकी के
साथ वूलवर्थ के लंच काउंटर पर बैठी इंतज़ार कर रही थी
कि जो ऑर्डर किया वह मिल्क शेक
जल्दी से आ जाये
उसका चॉकलेट वाला, मेरा वेनीला ....
इस बीच विकी उठी वॉश रूम गयी
उसका चॉकलेट शेक जब आया तो वह
लौटी नहीं थी और मुझे सूझा मज़ाक
मैंने उसपर छिड़क दी नमक और काली
मिर्च की बुकनी
बात यह थी कि मैं जवान थी बेपरवाह
थी और निर्मम भी
हाँलाकि अपने बारे में इसका मुझे
एहसास नहीं था.
विकी आयी और स्ट्रॉ से ऊपर तैरती
काली मिर्च हटा कर सहज भाव से
ग्लास के अंदर डुबो कर पीने लगी
अपना मिल्क शेक चिरंतन भाव से
ऐसा लगता था जैसे पीती रहेगी ऐसे
ही वो शेक युग युगांतर तक.
यह जीवन में अबतक पिया मेरा सबसे
स्वादिष्ट मिल्क शेक है ...
उसने ऐसा कहा हाँलाकि उसके कहने
में आह ज्यादा थी कथन कम.
अब तक पिया मेरा सबसे स्वादिष्ट
मिल्क शेक है
ऐसे ही अचानक और अप्रत्याशित ढंग
से जन्म लेती है बोरियत
मैंने विकी का मिल्क शेक पी के
देखा बताया भी कि मैंने क्या करतूत की है
जब मेरा वेनीला शेक आया तब उसमें
भी हमने नमक काली मिर्च मिला दी
इस हरकत ने हमें इतना बोर किया कि
हम चल दिए शॉपिंग करने
हम वूलवर्थ में थे - हाँलाकि
शॉपिंग से हमारा मकसद उचक्केगिरी का था -
ये हुनर सिर्फ़ तेरह साल की अकेली
बोर होती लड़कियाँ खूब जानती हैं.
विकी ने पेट्रोलियम जेली वाला लिप
ग्लॉस का नया नया बाज़ार में आया गुलाबी डिब्बा उठाया
और मैंने पीले लेस वाला एक
दुपट्टा संडे को ईस्टर के मास में पहनने के लिए ...
हाँलाकि इतवार को मास के लिए
मैंने उसको पहना कभी नहीं
एक दिन पहले शनिवार को मैं उस
दुपट्टे को पहन कर कन्फेशन के लिए गयी
पादरी को यह बताने कि यह पीला
दुपट्टा मैंने शॉपिंग मॉल से चुराया
जो अभी लपेटे हुए हूँ मैं अपने
सिर पर ...
ऐसा करती भी क्यों नहीं - मेरे
पास कन्फेस करने को और कुछ था भी क्या ?
सबसे अच्छी सहेली के साथ घटिया
हरकत की,हाँलाकि नतीजा अच्छा ही निकल कर आया
परेशान होने के काबिल नहीं थी
बिलकुल ही यह हरकत.
और तो और मुझे देख कर लगा पादरी
बिलकुल ही बोर हो गया मेरे कन्फेशन के बारे में जानकर
मैंने सोचा था उसको चौंका दूँगी
अपनी बात बता कर
उल्टा पादरी ने ही अपने हाव भाव
से मुझे अचरज में डाल दिया
मैं थी भी तो तेरह साल की -
वयस्कों की बोरियत के बारे में जानती ही क्या थी!
पादरी ने तीन बार मुझे "हेल
मेरी" का मंत्र सुनाया और परदा सरका कर चलता बना.
यह सब आख़िर हो क्या रहा है?
दुपट्टा चुरा कर अपने बर्ताव पर
मैं खुद चौंकी थी और इसका कन्फेशन किया
पादरी को मेरी बात बिलकुल ही
अजूबा लगी और वह बोर हो गया
उसकी बोरियत ने मुझे हैरत में डाल
दिया
हाँलाकि यह हैरत बाद में भी हो
सकती थी - बरसों बाद
जब कि लिप ग्लॉस खर पतवार सी सब
ओर दिखाई देने लगती
और सिर पर दुपट्टा रखने का
कैथोलिक रिवाज़ दकियानूसी में शुमार किया जाने लगता ....
और जब पादरियों को खड़ूस और
निष्ठुर माना जाने लगता ....
और नमक और काली मिर्च की बुकनी का
फ़ैशन सिर पर चढ़ कर बोलने लगता
शेखी बघारने वाले खोखों से लेकर
अमीरों के चोंचलों तक में,तब.
पर जैसा मैंने पहले ही कहा ,अकेली और बोर होना मेरे मिजाज़ में होता नहीं शुमार
और अब आज का दिन बन गया मेरी
शख्सियत का अपवाद
वैसे देखें तो बाबा आदम के ज़माने
से होता रहा है हर दिन का कोई न कोई अपवाद
और कोई आज टिकता नहीं चिरंतन,
कल आता ही है
कल भी कहाँ अजर अमर है , लौट आता है आज में
और आज फिर कल बन कर उदय होता है
....
मुझे मानना ही होगा कि हम आप इस
चक्र को कितनी भी कोशिश करें
बदल नहीं सकते.....
बदल नहीं पायेंगे ....
यादवेन्द्र पाण्डेय |
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