(पिछली क़िस्त से आगे)
अमरीकी
बहुराष्ट्रीय कंपनी कारगिल स्थानीय बड़े किसानों को सोया उगाने के लिए प्रोत्साहित
करती है.
बिना
घुमाए फिराए अपनी बात कहने के क़ायल फ़ादर
सेना कहते हैं कि उनका मुख्य निशाना कारगिल कंपनी है. उसने सन 2000 में संतारेन
में क़दम रखा और नदी पर विशाल पोर्ट बनाया.
फ़ादर सेना कहते हैं,
''इसे मैं नदी वाला राक्षस कहता हूँ. क्यों मैं ऐसा कहता हूँ?
क्योंकि इस पोर्ट के बनने के बाद मातो ग्रोस्सो जैसे ब्राजील के
दूसरे राज्यों से सोयाबीन उगाने वाले यहाँ हमारे जंगलों में आए और उन्होंने जंगलों
का सर्वनाश शुरू कर दिया''. कारगिल के दानवाकार वेयरहाउसों
के अंदर घुसकर हमने सोयाबीन के ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखे. सैकड़ों हज़ारों वर्ग
किलोमीटर जंगलों का सफ़ाया करके उगाई गई ये सोयाबीन यूरोप और चीन के बाज़ार में खपेगी.
गाय और बैलों को खिलाई जाएगी ताकि वो हृष्ट पुष्ट हों और ज़्यादा माँस बाज़ार में बेचा जा सके. फ़ादर सेना
बताते हैं कि समस्या तब आती है जब इन जंगलों को बचाने के लिए यहाँ बसे लोग सामने
आते हैं.
अगर
ज़रूरत पड़ी तो ऐसे लोगों का क़त्ल करके उन्हें रास्ते से हटा दिया जाता है.
संतारेन
में ऐसे लोगों के तलाशना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था जो जंगल माफ़िया के डर से
अपने गाँव छोड़कर शहर में रह रहे हैं. ऐसे बेदख़ल किए गए लोगों के जनसंगठन का
नेतृत्व करती हैं 49 साल की मारिया एवैच बास्तुस द्विसैंतुस. ये संगठन कामगारों की
लड़ाई लडऩे वाले चीको मेंदेस ने शुरू किया था जिन्हें अस्सी के दशक में अमेज़न के
जंगल माफ़िया ने मार डाला था और न्यूज़वीक पत्रिका ने उन्हें अमेज़न का गाँधी कहा था.
मारिया को जंगल माफ़िया से कई बार जान से मार डालने की धमकी दी गई है. लंबी लड़ाई
लडऩे के बाद पुलिस ने उनकी सुरक्षा के लिए चौबीस घंटे हथियारबंद गार्ड तैनात किए
हैं. अपने साधारण से दफ़्तर के दालान में उन्होंने हमसे बात की. उन्होंने कहा, ''हमारा
संगठन लोगों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल किए जाने से रोकता है. हम भूमि सुधार के लिए
काम करते हैं.'' एक लंबे इंटरव्यू के दौरान मारिया ने बताया
कि संतारेन इला क़े के सोयाबीन की खेती करने वाले बड़े फ़ार्मर ग़रीब लोगों को बंदूक
के ज़ोर पर उनके घरों और उनकी ज़मीनों से बेदखल कर रहे हैं. पारा राज्य के सिर्फ़
संतारेन इला क़े में ही हज़ारों परिवारों को
उनकी ज़मीन से बेदख़ल किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि ज़मीन सुधारने के इस आंदोलन
के सभी नेताओं का जीवन ख़तरे में है. मारिया के 11 भाई बहिन हैं और वो कहती हैं कि
आंदोलन के कारण उनका पूरा परिवार उनके बारे में चिंतित रहता है. ''कई लोग मारे गए हैं. चीको मेंदेस की हत्या कर दी गई. मैं चाहती हूँ कि ऐसा
न हो और मैं इस बारे में चिंतित भी हूँ. लेकिन मैं मरने को तैयार हूँ.'' मारिया एक अनिश्चित सी आडंबरविहीन मुस्कुराहट के साथ कहती हैं. उन्हें और
फ़ादर एलबेर्तो सेना को पिछले साल नवदान्या संगठन की वंदना शिवा ने भारत आमंत्रित
करके पुरस्कृत किया था. पुरस्कार में उन्हें महात्मा गांधी की वह मूर्ति दी गई थी
जिसे फ़ादर सेना की मेज़ पर देखकर मैं अचकचा गया था.
आज
इतने बरसों बाद मुझे नहीं मालूम कि मारिया कहां हैं और किस हाल में हैं. लंदन से
प्रकाशित होने वाले अख़बार द गार्डियन ने 2011 में लिखा कि अमेज़न में जल, जंगल
और इंसानों के अधिकारों के लिए लडऩे वाला औसतन एक कार्यकर्ता हर हफ़्ते मारा जाता
है. पिछले ही महीने ग्लोबल विटनेस नाम के संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि
दुनिया भर में जंगल और ज़मीन को बचाने की लड़ाई लडऩे वाले 185 लोग 2015 में कत्ल कर
दिए गए और इनमें सबसे ज़्यादा 50 लोग
ब्राज़ील में मारे गए.
मेरे
शरीर में झुरझुरी सी होती है और ज़ेहन में बार बार मारिया एवैच बास्तुस द्विसैंतुस
के शब्द गूंजते हैं - ''लेकिन मैं मरने को तैयार हूं.''
मारिया
से मुलाकात के बाद लौटते हुए हम सभी लगभग खामोश थे. इतना सबकी समझ में आ चुका था
कि अमेज़न का संकट सिर्फ़ पर्यावरण या जलवायु का संकट नहीं है. इसके पीछे बहुत बड़ा
व्यापार और बहुत सारी दौलत लगी है.
*
* *
मनाऊस
लौटकर हम एक बार फिर उसी नदी रियो नीग्रो के तट पर आ गए जहाँ से चले थे. एक बार
फिर से नाव पर सवार होने को तैयार. जेम्स बाण्ड की फ़िल्मों से मशहूर हुई क़ातिल पिरान्हा मछली से मुला क़ात अभी बा क़ी है.
यूँ तो पिरान्हा सिर्फ सात-आठ इंच लंबी होती है लेकिन ये मिनटों में एक पूरे के
पूरे इंसान को अपने नुकीले दाँतों से कुतर कुतर कर चट कर सकती हैं.
इसी
पिरान्हा मछली पकडऩे के अभियान पर निकले एक दर्जन पत्रकार नदी में काँटा डाले दम
साधे, ऊबते हुए इंतज़ार कर रहे थे कि कब काँटे में हरकत हो और कब माँसखोर
पिरान्हा पकड़ में आए. लेकिन कुमाऊँनी कहावत है कि 'चोरनाक
कैले जै मोर मरना, भाबरैकि जसि रीति नि है जानि?' अगर चोर ही मोर मार सकते तो भाबर की रीति सही साबित न हो जाए. यानी
कलमघिस्सू पत्रकार अगर पिरान्हा मारने लगे तो मछुआरे क्या झख मारेंगे?
साँझ
के झुटपुटे में लिपटी शांत रियो नेग्रो की हवा में अचानक एक तेज़ चीत्कार गूँजी.
इससे पहले मैं य क़ीन कर पाता कि ये चीत्कार मेरी ही है, मेरे
हाथ का मछली पकडऩे वाला कांटा आसमान में था और उसकी डोरी में सात इंच लंबी मछली
लटकी थी. मैंने आसपास देखा और पाया कि साथियों के मुँह लटके थे. हमारे नाव वाले ने
तुरंत मछली को अपने हाथ में लिया और घोषणा की कि ये पिरान्हा नहीं है. मैंने तुरंत
उसे काँटे से निकालकर फिर से नदी में
छोडऩे का फ़ैसला किया.
अमेज़न
और उस पर आश्रित जीवन क्या पहले ही कम संकट में है?
कुछ
तथ्य :
1.
अमेज़न के वर्षावनों का इला क़ा सत्तर लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसका 65
प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में पड़ता है.
2.
अनुमान है कि पाँच सौ साल पहले इन वर्षा वनों में एक करोड़ इंडियन आदिम जातियाँ
बसती थीं.
3.
अब इन आदिवासियों की संख्या अब सिर्फ ढाई लाख बची है. बाकी लोग बाहर से जैसे
दक्षिण ब्राज़ील से आए हैं.
4. क़रीब ढाई से तीन करोड़ लोग अमेज़न के जंगलों में
बसे हैं. इनमें से ज़्यादातर दूसरे इलाकों
से आकर बसे हैं.
5.
एक से डेढ़ एकड़ वर्षा वन हर क्षण काटा जा रहा है.
6.
कभी धरती के 14 प्रतिशत हिस्से को वर्षा वन ढँके हुए थे. अब ये सिर्फ छह प्रतिशत
रह गया है. अगले चालीस साल में ये जंगल भी काट दिए जाएंगे.
7.
वर्षा वन काटे जाने से हम रोज़ाना 137 किस्म की वनस्पतियों, जानवरों
और कीट पतंगों की क़िस्में खो रहे हैं. यानी हर साल पचास हज़ार क़िस्में मिट जाती हैं.
8.
मित्शुबिशी कॉरपोरेशन,
जॉर्जिया पैसिफ़िक, टैक्साको और यूनोकल जैसी
विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चेनसॉ या मशीनी आरे से पेड़ काटते हैं और क़ीमती लकड़ी बाज़ार में बेच दी जाती है.
स्रोथ
: http://www.rain-tree.com/facts.htm
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