Thursday, March 16, 2017

हल्द्वानी के किस्से - 5 - पंद्रह

(पिछली क़िस्त से आगे)



परमौत की प्रेम कथा - भाग पंद्रह

परमौत ने फ़ोटो वाला लिफाफा वापस गिरधारी को थमाया और जल्दी-जल्दी गुसलखाने में चला गया. दस मिनट में वह बाहर सड़क पर था जहाँ पूरा गोदाम-मंडल उसकी प्रतीक्षा में आतुर था. इस दरम्यान उसकी समझ में यह बात नहीं आई थी कि गिरधारी पिरिया की फोटू कैसे ले आया होगा. अभी तो उसने गिरधारी को बताना था कि पिरिया असल में है कौन. लेकिन उसका चोर मन कहता था कि जिस तरह का संयोग पिछली रात घटा था उसके परिप्रेक्ष्य में गिरधारी का यह जादुई कारनामा कर सकना भी संभव था. इसके अलावा पिछली रात पिरिया और लम्बू अमिताब  के एक ही घर में घुसने के उसने तमाम अर्थ लगाए लेकिन किसी भी ठोस नतीजे पर नहीं पाहुंच सका था. वह पिरिया का घर हो सकता था. वह लम्बू अमिताब का घर भी हो सकता था. वह लम्बू अमिताब के किसी परिचित या रिश्तेदार का घर भी हो सकता था जिसने हो सकता है उन्हें भागने में मदद की हो. वह पिरिया के भी किसी ऐसे ही परिचित या रिश्तेदार का घर भी हो सकता था. जो भी हो पिरिया को हफ्ते भर के लम्बे अंतराल के बाद देखना उसके लिए बेहद खुशी देने वाला रहा था और पिरिया के कम से कम एक स्थाई अथवा अस्थाई अड्डे तक पहुँच सकना भी.

हम तीनों ने जैसे तैसे कहीं से पचास पचास रूपये इकठ्ठा करके जिन की एक बोतल और कुछ चबेना खरीद रखा था और हम परमौत को लेकर सीधे गोदाम जाकर गिरधारी द्वारा अब तक न बताए गए सीक्रेट की पाल्टी करने की नीयत रखते थे.

परमौत के बाहर निकलते ही हमने उसे आँख मारी जिसे अनदेखा करते हुए उसने हमसे तेज़-तेज़ उसके मोहल्ले की सरहद से बाहर निकल चलने का इशारा किया.

दस मिनट के भीतर हम गोदाम के भीतर थे - मोहब्बत, मनहूसियत और मैकशी से सराबोर जिसकी हर शै हमारा इंतज़ार कर रही लग रही थी.

बोतल खुलने से पहले ही नब्बू डीयर बोला - "अबे गिरधारी गुरु आज सुबे-सुबे किच्चक्कर में पाल्टी हो रई साली ... जीनातामान का ब्या तो ना हो रा भलै ..."

"अबे नब्बू वस्ताज, सबर करो जरा सबर. बड़ी वाली पाल्टी का काम हुआ ठैरा आज परमौद्दा का. बड़ी मेनत करी है साली सुबे से इसके लिए" - परमौत से चिपक कर बैठते हुए गिरधारी ने बोलना जारी रखा - "ले यार परमौद्दा ... देख ले भाभी की फोटुक. क्या याद करेगा किस साले गिरधारी ने वादा निभाया अपना और वो भी पैन्चो बखत से पहले ..." परमौत के हाथ में उसने फोटो वाला लिफ़ाफ़ा पुनः थमाया. परमौत ने खोल कर देखने की जगह उसे अपनी कमीज़ की जेब के हवाले किया और बोतल का ढक्कन खोलने लगा.

"मुझको तो पैले ही पता हुआ परमौद्दा कि भाबी कौन हुई. वो तो तेरा लिहाज़ कर रहा हुआ मैं इत्ते दिन से. नहीं तो कब के बता दिया होता इन सब सालों को. नहीं तो अपने नबदा कितने हरामी हुए, सब जानने ही वाले हुए. इनको बताता तो साले ये भी लग जाते वहां अपना मूँ उठाके ..."

"अबे ससुर पैले फोटुक तो दिखाओ साले ... और तुम लम्बुआ गुरु अपनी मत कहना भौत. बता रहा हूँ."

गिलास ढाले जा चुके थे और हम सब की उत्सुकता परमौत की कमीज़ की जेब पर केन्द्रित हो गयी थी जिसके भीतर से उस जादुई लिफाफे को निकालने की उसकी कत्तई नीयत नहीं लग रही थी.

"तू तो सैणियों की चार सरमा रहा हुआ यार परमौद्दा ..." कहते हुए गिरधारी ने लिफाफा परमौत की जेब से बाहर निकल लिया. परमौत ने जरा भी विरोध नहीं किया. 

लिफाफा खोल कर उसमें से दो एक जैसे पासपोर्ट साइज़ फोटो निकले जिनमें से एक मैंने हथिया लिया दूसरा नब्बू डीयर ने.

"सई है लौंडिया वैसे तो मल्लब ... भौत सई है बस फोटूगीराफ़र ने जरा फोटुक सई एंगिल से नहीं खींच रखी. इस चक्कर में जरा ढैणी लग रई गिरुवा की भाबी ..." काइयां नब्बू डीयर अपने पहले कमेन्ट जारी करने लगा था.

मैंने भी एक झलक में ताड़ लिया कि फोटो में सचमुच तनिक ढैणी दिख रही लड़की किसी भी कोण से पिक्चर की हीरोइन तो नहीं दिख रही थी अलबत्ता उसके चेहरे पर एक मूर्ख किस्म की निश्छलता थी जिस पर परमौत जैसे बौड़म के दिल के आ जाने को मैंने कोई अचरज करने वाली चीज़ नहीं जाना.

पिरिया की आँखों के बारे में नब्बू डीयर की राय सुनकर एक पल को परमौत को गुस्सा आ गया - "ढैणी होगी तेरी भाबी नबुआ. तुम क्या जानो सालो खबसूरती! तुम तो बस दारू पियो और मुकिया के गाने सुन के बस ओईजा-ओबाज्यू करते रैना बेटा जिन्दगी भर ... जरा ये देख ... ये पिरिया तुझको ढैणी लग रही है ... हैं? ..." - परमौत ने मेरे हाथ से फोटो छेना और उसे देखते ही जैसे उसके होश गायब हो गए.

करीब दस सेकेण्ड बाद वह गिरधारी पर फटा - "साले गिरधारी ... बहुत स्मार्ट बन रहे हो साले ... जब मैंने कहा था कि पहले मैं लड़की दिखाऊंगा तो सबर नहीं होता था तुझसे ... अबे ये फोटो जो है ..."

"देख यार परमौद्दा नाराज मत हो यार ... मैंने एक बार देखा ठैरा ना तुम्को भाबी के साथ उस दिन जब तुम उसके संग समोसे खा रहे हुए वो क्या नाम कहते हैं घनुवा सौंठ के खोमचे पे ... तो मैं जानने वाला हुआ भाबी को ... तू समझ क्या रहा है यार परमौद्दा ... और साले चापरासी को पचास रुपे दे के कॉलेज के दफ्तर से चाऊ कर के लाया हूँ बिचारी भाबी की फोटुक और तू ऐसे मुझी पे फ़ैल रहा हुआ यार ..."

"भांग की फुन्तुरी है भाभी, कद्दू का टुक्का है माचो ... जड़ है किल्मौड़े की ... अबे ये वो ससी है सालो जो मेरे पीछे पड़ी हुई है इत्ते दिन से बता नहीं रहा था मैं जिसके चक्कर में कप्यूटर जाना बंद कर रखा है मैंने. और ये साले बड़े वो बन रये गिरधारी क्या नाम कहते हैं गोपीचन्दर जासूस - अबे घनश्याम हलवाई की दूकान पे समोसे खाने से कोई भाबी बनने वाली होती तो ये अपने नब्बू डीयर जो हैं ना, पांच तो इनकी शादी हो गयी होतीं ... हटा साले को ..."  - कहते हुए गुस्से में उसने अपना गिलास सामने की दीवार पर पटक दिया. 

परमौत को इतना आक्रामक हमने कभी नहीं देखा था. हम चारों में वही सबसे अधिक शालीन और ठहरा हुआ था लेकिन मेरा मानना था कि मोहब्बत के चक्कर में इंसान का ऐसा हाल हो ही जाना था. गिरधारी लम्बू ने ग़लती की थी पर अपने दोस्त की सहायता करने के लिए उसने जितना रिस्क लेकर कॉलेज के एडमीशन फॉर्म में से ससी का फोटो निकाल दिखाया था उसकी कुछ तो तारीफ़ बनती थी. तारीफ नब्बू डीयर की ओर से आई -

"देख यार परमौती ... एक तो गिलास ऐसे फोड़ते नहीं हैं और दूसरे ये कि जो भी कहो ढैणी होने के बाद भी साली माल तो लग रही है लौंडिया. और तुमको तो थैंक्यू कैना ही पड़ेगा गिरधारी लला जो साले रेगिस्तान में पानी का सोता जैसा फोड़ने को एक फोटुक तो ले के आये ... जरा अपने खुट दिखाओ तो उनको छू के आशिरबाद ले लेते हैं कि कभी हमारे लिए भी ऐसे ही फोटुक ले के आओगे कभी ..."

खासा रुआंसा हो चुका गिरधारी एक कोने में सुबकने को तैयार बैठा था. नब्बू डीयर का मज़ाक उसे ज़रा भी पसंद नहीं आया और वह बिफर कर परमौत से मुखातिब होकर बोला - "साला ऐसे सबके सामने कोई समोसे खाता है यार परमौद्दा ... अबे हल्द्वानी है यार हल्द्वानी. कोई साला बॉम्बे लंदन समझ रखा है ... अबे यहाँ लौंडिया का सपना भी देखो तो लोग कैने लगते हैं साले चक्कर चल रहा है तुम्हारा. बहन के साथ भी रिक्से में जाओ तो साले ऐसे घूर-घूर के देखने लगते हैं हरामी ... और तू जो है परमौद्दा साले समोसा खा रहा हुआ चटनी लगा-लगा के सबके सामने और वो भी घनुवा हलवाई के यहाँ ... अब मैं उसको तेरा चक्कर ना समझता तो तेरी दिद्दी समझता क्या ... उलटे इतने दिन से जो मार यहाँ-वहाँ चक्कर लगा के वो तेरी ससी-फसी के खानदान का पूरा हिसाब-किताब इकठ्ठा कर रखा है, उसको तू एक झटके में भांग की फुन्तुरी बता रहा हुआ पैन्चो ... क्या यार ..."

गिरधारी की आँखों से बाकायदा आंसू बहने चालू हो गए. इससे परमौत हकबका गया. दरअसल हम सब गिरधारी के रोने से हकबका गए थे. परमौत ने उठ कर गिरधारी को कन्धों से थामा और उठाकर गले से लगा लिया. ऐसा करने से गिरधारी का रोना और तेज़ हो गया जिसे चुप कराने के लिए नब्बू डीयर ने पिछले कई सालों का हिसाब चुकाते हुए "गिरधारी चोप्प भैं ..." का उद्घोष किया. गिरधारी चुप हो गया. मैं और नब्बू डीयर गिलास के चूरे उठाने लगे.

"फिर अब ..." मैंने झुके-झुके ही सवालिया निगाह राम-लक्ष्मण बने परमौत और गिरधारी पर डाली.

"अब क्या ... अब घंटा! ... तुम्हारी भाबी जो है वो भाग गयी है उस हरामी लम्बू के साथ और कल ही वो लोग दिल्ली से शादी कर के लौटे हैं .... मैंने अपनी आँखों से देखा है कल रात ..."

"लेकिन कल रात दो बजे तक तो तू मेरे साथ था यार परमौद्दा ... "

माहौल वापस नियंत्रण में आ रहा था और परमौत ने रोडवेज़ से लेकर रामपुर रोड की गली तक के अपने सफ़र की तफ़सीलात बयान कीं.

हमारे पास परमौत के लिए घनघोर सहानुभूति थी लेकिन हम कर कुछ नहीं सकते थे.

"मल्लब भाबी ने घर से भाग के सच्ची-मुच्ची की सादी कर ली और लौट भी आई?" - नब्बू डीयर के स्वर में अविश्वास और अचरज के मिले-जुले भाव थे.

"हाँ यार ... उस से तो ये फोटो वाली मोटी सही हुई ना ... अरे कम से कम भागी तो नहीं ... उलटे हमारे परमौती के साथ समोसे भी खाए और मोब्बत करने वाली चिठ्ठी भी उसको दी ... लेकिन नब्बू वस्ताज ये होने वाली ठैरी आशिकी ... मल्लब मोब्बत ... वो साली सायरी नहीं है एक पिक्चर में कि आग कि नदी होने वाली हुई और उसी में डूब के हिल्ले से लगने का काम होने वाला हुआ. परमौत गुरु को तो वो चइये जो साली किसी और के पास हुई और जिसको परमौत गुरु अच्छे लगने वाले हुए उसको समोसे के अलावा घुत्ती भी नहीं मिलने वाली हुई ... मैं मुकेश के किसी नैराश्यपूर्ण गाने को उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहता था लेकिन उस समय कुछ भी याद नहीं आया. मेरी दुविधा को शायद नब्बू डीयर ने ताड़ लिया और अपनी नक्कू अचारी आवाज़ में उसने गुनगुनाना शुरू किया -  बहारों ने मेरा चमनि लूटिकर खिज़ा को ये इल्जामि क्यों दे दिया ..."

तीस-चालीस सेकेण्ड को गोदाम की कराहती आत्मा को नब्बू डीयर ने मुकेश के अनिष्टकारी गीत की मार्फ़त आवाज़ अता फ़रमाई जिसके बाद परमौत को हाथ जोड़कर उससे गाना बंद कर देने का संकेत किया.

गिरधारी अब नार्मल होता दिख रहा था और सबके लिए गिलास भर रहा था.

"मैंने सोचा कि यार परमौद्दा खुस होगा कि मैंने भाबी के घर खानदान के बारे में सब पता लगा लिया हुआ कि एक तो वो अपने माँ-बौज्यू की इकलौती औलाद हुई और उसके बौज्यू करने वाले हुए पीडबुलडी में घूसखोरी की नौकरी. सुभाषनगर में दोमंजिला घर हुआ और घर में रैनेवाले हुए तीन जने और चार कुकूर-बिरालू. हाईस्कूल में उसके आये रहे तित्तालीस परसेंट और इंटर में आई रही सोसोलौजी में सप्लीमेंटरी. बीए किया ठैरा लौंडिया ने होमसाइंस में सेकिण्ड डिभीजन और अब एमे कर रही इंग्लिस में. और ... लेकिन इस सब को बताने का अब क्या फायदा हुआ भलै ... वो तो कोई और ही निकल गयी पैन्चो ..." - सब कुछ बता चुकने के बाद गिरधारी अब दयायाचना की निगाह से परमौत को देख रहा था.

परमौत और नब्बू डीयर ने इस वार्तालाप के अलग-अलग मानी निकाले - परमौत गिरधारी के भीतर छिपे शोधार्थी से बहुत इम्प्रेस हुआ और सोचने लगा कि जब गिरधारी हफ्ते-दस दिन में ससी के बारे में इतनी बहुमूल्य जानकारी जुटा सकता है तो फोटो का जुगाड़ करने के अलावा वह पिरिया के बारे में भी ऐसा ही कर सकता है. नब्बू डीयर को ससी में भरपूर संभावना नज़र आई. उसकी काल्पनिक प्रेमिका का अब तक कोई पता-पानी नहीं था जबकि यहाँ प्रेम करने को आतुर एक माल टाइप की तनिक ढैणी लड़की बमय फोटू और बायोडाटा के मौजूद थी. नब्बू को बचपन से ही किसी ऐसे ही घराने की तलाश थी जिसमें एक घूसखोर बाप हो और इकलौती लड़की भी. ऐसे खानदान का घरजमाई बन पाना उसके संजीदा सपनों में शुमार था. ससी के फोटू को अपनी आँखों के पास ले जाकर और उसे काफी देर तक ध्यान से देखने के बाद उसने गिरधारी से पूछा - "मल्लब एक महीने में कितना कमा लेता होगा ये क्या नाम कहते हैं ये ससी-हसी का बाप ..."

इस बार गिरधारी ने भ अक्षर से शुरू होने वाली दो गंभीर गालियाँ देकर नब्बू डीयर को कोसना चालू किया तो परमौत बोला - "सॉरी यार गिरधारी वस्ताद ... ग़लती मेरी है साली ... मैंने तुम सब को पैले ही दिखा देना था पिरिया को. पैले बता दिया होता तो ना वो उस लम्बू के साथ भाग कर दिल्ली जाती ना इतना फजीता होता ... माफ़ कर दे यार ..."

गिरधारी परमौत के गले से लिपट गया और तनिक भर्राए स्वर में बोला - "कल को दिखा देना मुजको कि भाबी कौन सी वाली है. बस. आगे का काम तेरा ये चेला कर देने वाला हुआ परमौद्दा ..."     

(जारी)

1 comment:

Krishna said...

Hope it is not over. Love your writing.