दो पुस्तकों के बीच का विराम
छोटी-सी
चाबी से बड़ा संदूक खोला जा सकता है - मेरे पिता जी कभी-कभी ऐसा कहा करते थे. अम्माँ
तरह-तरह के किस्से-कहानियाँ सुनाया करती थीं - 'सागर
बड़ा है न? हाँ, बड़ा है. कैसे बना
सागर? छोटी-सी चिड़िया ने अपनी और भी छोटी चोंच जमीन पर मारी
- चश्मा फूट पड़ा. चश्मे से बहुत बड़ा सागर बह निकला.'
अम्माँ
मुझसे यह भी कहा करती थीं कि जब काफी देर तक दौड़ लो - तो दम लेना चाहिए, बेशक तब तक, जब तक कि हवा में ऊपर को फेंकी गई टोपी
नीचे गिरती है. बैठ जाओ, साँस ले लो.
आम
किसान भी यह जानते हैं कि अगर एक खेत में, वह चाहे कितना
ही छोटा क्यों न हो, जुताई पूरी कर दी गई है और दूसरे खेत
में जुताई शुरू करनी है तो जरूरी है कि इसके पहले मेंड़ पर बैठकर अच्छी तरह से
सुस्ता लिया जाए.
दो
पुस्तकों के बीच का विराम - क्या ऐसी ही मेंड़ नहीं है? मैं उस पर लेट गया, लोग करीब से गुजरते थे, मेरी ओर देखते और कहते थे - हलवाहा हल चलाते-चलाते थक गया, सो गया.
मेरी
यह मेंड़ दो गाँवों के बीच की घाटी या दो घाटियों के बीच टीले पर बसे गाँव के समान
थी.
मेरी
मेंड़ दागिस्तान और बाकी सारी दुनिया के बीच एक हद की तरह थी. मैं अपनी मेंड़ पर
लेटा हुआ था, मगर सो नहीं रहा था.
मैं
ऐसे लेटा हुआ था, जैसे पके बालोंवाली बूढ़ी
लोमड़ी उस समय लेटी रहती है, जब थोड़ी ही दूरी पर तीतर के
बच्चे दाना-दुनका चुग रहे होते हैं. मेरी एक आँख आधी खुली हुई थी और दूसरी आधी
बंद थी. मेरा एक कान पंजे पर टिका हुआ था और दूसरे पर मैंने पंजा रख लिया था. इस
पंजे को मैं जब-तब जरा ऊपर उठा लेता था और कान लगाकर सुनता था. मेरी पहली पुस्तक
लोगों तक पहुँच गई या नहीं? उन्होंने उसे पढ़ लिया या नहीं?
वे उसकी चर्चा करते हैं या नहीं? क्या कहते
हैं वे उसके बारे में?
गाँव
का मुनादी करनेवाला, जो ऊँची छत पर चढ़कर तरह-तरह
की घोषणाएँ करता है, उस वक्त तक कोई नई घोषणा नहीं करता,
जब तक उसे यह यकीन नहीं हो जाता कि लोगों ने उससे पहलेवाली घोषणा
सुन ली है.
गली
में से जाता हुआ कोई पहाड़ी आदमी अगर यह देखता है कि किसी घर में से कोई मेहमान
नाक-भौंह सिकोड़े, नाराज और झल्लाया हुआ बाहर
आता है तो क्या वह उस घर में जाएगा?
मैं
पुस्तकों के बीच की मेंड़ पर लेटा हुआ था और यह सुन रहा था कि मेरी पहली पुस्तक
के बारे में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया हुई है.
यह
बात समझ में भी आती है - किसी को सेब अच्छे लगते हैं और किसी को अखरोट. सेब खाते
वक्त उसका छिलका उतारा जाता है और अखरोट की गिरियाँ निकालने के लिए उसे तोड़ना
पड़ता है. तरबूज और खरबूजे या सरदे में से उनके बीज निकालने पड़ते हैं. इसी तरह
विभिन्न पुस्तकों के बारे में विभिन्न दृष्टिकोण होना चाहिए. अखरोट तोड़ने के
लिए खाने की मेज पर काम आनेवाली छुरी नहीं, मुंगरी की
जरूरत होती है. इसी तरह कोमल और महकते सेब को छीलने के लिए मुंगरी से काम नहीं
लिया जा सकता.
किताब
पढ़ते हुए हर पाठक को उसमें कोई न कोई खामी, कोई त्रुटि
मिल जाती है. कहते हैं कि खामियाँ-कमियाँ तो मुल्ला की बेटी में भी होती हैं,
फिर मेरी किताब की तो बात ही क्या की जाए.
खैर, मैंने थोड़ा-सा दम ले लिया और अब मैं अपनी दूसरी किताब लिखना शुरू करता
हूँ. कितने पाठकों के लिए मैं इसे लिखने जा रहा हूँ, मुझे मालूम
नहीं. इसकी कितनी प्रतियाँ छपेंगी, इससे तो कोई भी निष्कर्ष
नहीं निकाला जा सकता. ऐसी पुस्तकें हैं जिनकी एक-एक लाख प्रतियाँ छपी हैं,
मगर उन्हें कोई नहीं पढ़ता, वे किताबों की
दुकानों और पुस्तकालयों के ताकों पर या अलमारियों में पड़ी रहती हैं. लेकिन किसी
दूसरी किताब की केवल एक ही प्रति होती है और वह लगातार एक पाठक से दूसरे पाठक के
हाथ में जाती रहती है और उसे अनेक लोग पढ़ते हैं. मुझे तो न पहली चीज की जरूरत है
और न दूसरी की. अगर एक पाठक भी मेरी पुस्तक को पढ़ लेगा तो मुझे खुशी होगी. मैं
इस पाठक को अपने छोटे-से, साधारण और गर्वीले देश के बारे में
बताना चाहता हूँ. यह बताना चाहता हूँ कि यह देश कहाँ है, इसके
निवासी कौन-सी भाषा बोलते हैं, किन बातों की चर्चा करते हैं
और कैसे गीत गाते हैं.
मैं
सब कुछ तो नहीं बता सकता. बड़े-बूढ़ों ने हमें यह सीख दी थी - 'सभी कुछ तो केवल सभी बता सकते हैं. लेकिन तुम वह बताओ, जो बता सकते हो और तब सभी कुछ बता दिया जाएगा. हर किसी ने अपना घर बनाया
और नतीजा यह हुआ कि गाँव बन गया. हर किसी ने अपना खेत जोता और नतीजे के तौर पर
सारी पृथ्वी ही जोती गई.'
तो
मैं तड़के ही उठ गया. आज मैं पहली हल-रेखा बनाऊँगा. नए खेत में नई हल-रेखा.
प्राचीन परंपरा के अनुसार एक ही अक्षर से शुरू होनेवाली सात चीजें मेज पर होनी
चाहिए. मैं अपनी मेज पर नजर दौड़ाता हूँ और मुझे सातों चीजें वहाँ दिखाई देती हैं.
ये हैं वे चीजें -
1.
कोरा कागज.
2.
अच्छे ढंग से गढ़ी हुई पेंसिल.
3.
माँ का फोटो.
4.
देश का नक्शा.
5.
दूध के बिना तेज कॉफी.
6.
उच्चतम कोटि की दागिस्तानी ब्रांडी.
7.
सिगरेटों का पैकेट.
अगर
अब भी मैं अपनी किताब नहीं लिख सकूँगा तो कब लिखूँगा?
चूल्हा
गर्म हो गया है. उस पर रखी हुई देगची में से भाप निकलने लगी है. बाहर हल्की-हल्की
और विरली बूँदा-बाँदी में से सूरज की किरणें छन रही हैं. कहते हैं कि ऐसे दिन
पहाड़ों में सभी जानवर रज्जुनटों की तरह सतरंगे इंद्रधनुष पर नाचते हैं. जब कभी
ऐसे दिन आते थे तो अम्माँ कहा करती थीं कि आसमान बारिश के धागों से कढ़ा हुआ है
और सूरज की किरणें सुइयाँ हैं.
आज
पहाड़ों में वसंत है, वसंत का पहला दिन है. मेरी
तरह वह भी आज पहली हल-रेखा बनाना शुरू कर रहा है.
'दागिस्तान के वसंत, यह बताओ कि तुम्हारे पास ऐसे
कौन से सात उपहार हैं जो एक ही अक्षर से शुरू होते हों?'
'मेरे पास ऐसे उपहार हैं,' वसंत ने उत्तर दिया,
'दागिस्तान ने ही उन्हें मुझे भेंट किया है. मैं अपनी भाषा में इन
उपहारों के नाम लूँगा और तुम उँगलियों पर उन्हें गिनते जाना.
1.
त्सा - आग. जिंदगी के लिए. प्यार और नफरत के लिए.
2.
त्सार - नाम. इज्जत के लिए. बहादुरी के लिए. किसी को नाम से पुकारने के लिए.
3.
त्साम - नमक. जिंदगी के जायके के लिए, जीवन की
मर्यादा के लिए.
4.
त्स्वा - सितारा. उच्चादर्शों और आशाओं के लिए. उज्ज्वल लक्ष्यों तथा सीधे
मार्ग के लिए.
5.
त्सूम - उकाब. उदाहरण और आदर्श के लिए.
6.
त्स्मूर - घंटी, बड़ा घंटा, ताकि सभी को एक जगह पर एकत्रित किया जा सके.
7.
त्सल्कू - छाज, छलनी, ताकि
अनाज के अच्छे दानों को निकम्मी और हल्की भूसी-करकट से अलग किया जा सके.'
दागिस्तान!
ये सात चीजें - तुम्हारे मजबूत जड़ोंवाले वृक्ष की सात शाखाएँ हैं. इन्हें अपने
सभी बेटों को बाँट दो, मुझे भी दे दो. मैं आग और नमक,
उकाब और सितारा, घंटा और छाज-छलनी बनना चाहता
हूँ. मैं ईमानदार आदमी का नाम पाना चाहता हूँ.
मैं
नजर ऊपर उठाकर देखता हूँ और वहाँ मुझे सूरज और बारिश, आग और पानी से बुना हुआ आसमान दिखाई देता है. अम्माँ हमेशा कहा करती थीं
कि सपने के समय ही आग और पानी से दागिस्तान बनाया गया था.
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