Sunday, June 11, 2017

भगवान भी रांझे जैसा नहीं है - तुफ़ैल नियाज़ी क्लासिक

हीर के गाँव झंग में हीर और रांझे की साझी कब्र 
तुफ़ैल नियाज़ी (1916-1990) की गाई हीर अद्वितीय है. उसी की एक कम्पोजीशन पेश है जिसमें हीर खेड़े के साथ शादी करने से इनकार करती हुई अपने महबूब रांझे के ही साथ जाने की अपनी ख्वाहिश को ज़बान देती है. वारिश शाह ने इस रचना के शुरू में लिखा है -

रांझण ढूंढन मैं चली मैंनू रांझण मिलिया ना
रब मिलिया रांझा ना मिलिया 
रब रांझे वरगा ना 

(मैं रांझा ढूँढ़ने निकली तो वो मिला नहीं. भगवान मिल गया पर रांझा नहीं मिला. अफ़सोस भगवान भी रांझे जैसा नहीं है)

यह पोस्ट अपने प्रिय संगीतकार मित्र रवि जोशी के नाम -      


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