क्षमा
हर गति की नियन्ता है
-संजय
चतुर्वेदी
हम
इस समुद्र का हिस्सा हैं
सूरज
और चन्द्रमा हमारे हैं
पवित्र
आत्माओं की धरती पर
क्षमा
हर गति की नियन्ता है
वायु
में जीवन की महक हूँ
जल
में हूँ सोम की प्रभा
अग्नियों
में प्रेरणा की अग्नि हूँ
दम्भ
भी किसी की क्षमा से है
तीन
बजे रात फ़ोन की घण्टी
बादलों
में सतर्क-सी चुप्पी
पर्वतों
में अजीब आवाज़ें
जंगल
में पशु भी भयभीत हैं
धरती
पर कहीं कुछ गड़बड़ है
उसकी
क्षमा पर हम निर्भर हैं
धरती
पर अगर कुछ गड़बड़ है
उसमें
हमारा भी हिस्सा है
मुक्ति
का रास्ता अकेले नहीं
प्रकृति
रहेगी तो हम भी हैं
तीन
बजे रात फ़ोन की घण्टी
कौन
आवाज़ दे रहा है हमें
वायु
में जीवन की महक हूँ
अग्नियों
में प्रेरणा की अग्नि हूँ
पवित्र
आत्माओं की धरती पर
जंगल
में पशु क्यों भयभीत हैं
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