भागो
- इब्बार
रब्बी
दुनिया
के बच्चो
बचो
और भागो
वे
पीछे पड़े हैं तुम्हारी
खाल
खींचने को
हड्डियाँ
नोचने को
बड़े
तुम्हें घेर रहे हैं
हीरे
की तरह जड़ रहे हैं
ठोक-पीट
कर कविता में
बच्चो, पेड़, चिड़ियो
रोटी
और पहाड़ो
भागो
क्रान्ति
तुम छिपो
हिन्दी
के कवि आ रहे हैं
काग़ज़
और क़लम की सेना लिए
भागो
जहाँ हो सके छिपो.
[1981]
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