आर्केस्ट्रा
- व्योमेश शुक्ल
पतली
गली है लोहे का सामान बनता है
बनाने
वाले दृढ़ ताली निश्चित लय में ठोंकते हैं
हथौड़ी
की उंगली
लोहे
का ताल
धड़कनों
की तरह आदत है समय को यह
समय
का संगीत है
ठ
क ठ क ठ क ठ क
या
ठकठक
ठकठक ठकठक ठकठक
और
भी लयें हैं सब लगातार हैं
लोगों
को आदत है लयों का यह संश्लेष सुनने की
हम
प्रत्येक को अलग-अलग पहचानते हैं
और
साथ-साथ भी
एक
दिन गली में लड़का पैदा हुआ है और
शहनाइयां
बज रही हैं
पृष्ठभूमि
में असंगत लोहे के कई ताल
एक
बांसुरी बेचनेवाले बजाता हुआ बांसुरी
गली
में दाखिल है और
बांसुरी
नहीं बिकी है शहनाई वाले से अब बात हो रही है
वह
बातचीत संगीत के बारे में नहीं है पता नहीं किस बारे में है
एक
प्राइवेट स्कूल का ५०० प्रति माह पाने वाला तबला अध्यापक
इस
दृश्य को दूर से देख रहा है
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