अंकुर
- इब्बार
रब्बी
1.
अंकुर
जब सिर उठाता है
ज़मीन
की छत फोड़ गिराता है
वह जब
अंधेरे में अंगड़ाता है
मिट्टी
का कलेजा फट जाता है
हरी
छतरियों की तन जाती है कतार
छापामारों
के दस्ते सज जाते हैं
पाँत
के पाँत
नई हो
या पुरानी
वह हर
ज़मीन काटता है
हरा
सिर हिलाता है
नन्हा
धड़ तानता है
अंकुर
आशा का रंग जमाता है
2.
क्या
से क्या हो रहा हूँ
छाल
तड़क रही है
किल्ले
फूट रहे हैं
बच्चों
की हँसी में
मुस्करा
रहा हूँ
फूलों
की पाँत में
गा
रहा हूँ
1 comment:
वाह
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