अपनी इस कविता के माध्यम से चंद्रभूषण
हमें बताते हैं कि अभी वे किस पाए की कविताएं हमें देने का माद्दा रखते हैं. पेशे
से पत्रकार और एक ज़माने में वाम-राजनीति के होल-टाइमर रह चुके चंदू भाई कबाड़खाने
के पुराने साथी हैं.
यह कविता सलीके से एकाधिक दफा पढ़े जाने
की मांग करती है. इसे पढ़ते हुए मुझे बारहा कोएत्ज़ी का उपन्यास 'डिस्ग्रेस' याद आता
रहा. इस बेमिसाल कविता की ज़द में अनेक ऐसी छवियाँ आती हैं, जिन्हें वीरेन डंगवाल 'द ग्रेट युनिवर्सल ट्रिविया' कहते थे और बड़ी कविता का सबसे ज़रूरी घटक मानते थे. काले-सफ़ेद और उनके
बीच के सलेटी के असंख्य शेड्स से बुनी गयी यह रचना आज चंदू भाई ने अपनी वॉल पर
लगाई थी. उनकी इजाज़त से इसे यहाँ पेश किया जा रहा है -
गुरु गुलाब खत्री
-
चंद्रभूषण
1.
लिखने वालों के बारे में कोई राय उनके
लिखे हुए से ही बनाई जानी चाहिए
लेकिन गुरु गुलाब खत्री के लिखे हुए पर
मेरी कोई राय नहीं है.
इतने विनम्र और अपने लिखे हुए को लेकर
इतने अनाश्वस्त वे हमेशा रहते थे
कि उनकी किसी चीज का नाम भर ले लेने से
उपकृत हो जाते थे
उसपर कुछ बोल कर तो आप उनके साथ डिनर
के हकदार हो सकते थे.
इसके अलावा उनकी और भी कई आदतें खुजली
पैदा करने वाली थीं
मसलन, कुबेर छाप खैनी खाकर
एक बार में ही गिलास भर थूकना
या खाना खाते वक्त गले से ऐसी आवाजें
निकालना
जैसे हर नए कौर से पहले पेट में गए
पिछले कौर को बाहर निकाल रहे हों.
उनके नजदीकी दोस्तों में कुछ ऐसे भी थे
जो किसी भी स्त्री के अंतरंग के बारे
में खुद उस स्त्री से भी ज्यादा जानते थे
और उसे बताने के हर सार्वजनिक मौके को
सुनहरे अवसर की तरह देखते थे.
एक स्तर पर यह लंपटता गुरू के
व्यक्तित्व का भी हिस्सा थी
जिसकी तरंग में आकर एक बार उन्होंने उस
प्रसिद्ध भिखमंगा उक्ति-
जो दे उसका भी भला, जो
ना दे उसका भी भला-
का अर्थ मेरे जेहन में हमेशा के लिए
बदल दिया था.
कितना विचित्र है यह सोचना कि जिसके
साथ तुम बराबरी के स्तर पर
दुनिया भर की टुच्ची बातें कर रहे हो, वह
किसी और ही समय में जी रहा है
तुम एक सीधी सड़क पर आराम से टहल रहे
हो
और तुम्हारा हाथ पकड़े चल रहा वह भूकंप
और चक्रवात से गुजर रहा है.
2.
गुरु गुलाब खत्री के साथ मैं पांच साल
एक दफ्तर में रहा
इस बीच उन्हें सबसे बड़ी खुशी और सबसे
बड़ा दुख हासिल हुआ
और एक ट्रांस में जीने का अलौकिक, अपार्थिव,
साइकेडेलिक अनुभव
जिसका सबसे तार्किक, सबसे
सुखद अंत फालिज मारने
और गुमनामी की मौत मर जाने के सिवाय और
कुछ नहीं हो सकता था.
आप आकाश में गड़गड़ाने वाली, अपनी
कौंध से अंधा कर देने वाली
बड़ी-बड़ी चीजों को फूस की तरह फूंक
देने वाली बिजली के बारे में जानते हैं
और उसे भी जो महीन तारों पर दौड़ती हुई
आपकी जिंदगी हसीन बना देती है
लेकिन इन दोनों को मिलाकर देखने की
हिमाकत कितने लोग कर पाते हैं?
साठ की उम्र में पत्नी-वंचित हुए गुरु
गुलाब खत्री के प्रेम प्रयासों को
करुणा या हास्य-व्यंग्य की नजर से
देखना सहज-स्वाभाविक है
लेकिन उन्हें प्यार की गहनतम
अभिव्यक्ति की तरह देखना
कुछ ऐसी ही हिमाकत करने जैसा है.
गुरू अपनी कविताओं में कोटेशन बहुत
देते थे,
सो एक यहां मैं भी देता हूं
गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज अपनी लव इन
द टाइम ऑफ कॉलरा में कहते हैं-
प्यार हमेशा सुंदर होता है लेकिन जब यह
मौत के करीब हो
तो इसकी बात ही कुछ और होती है.
यह सिर्फ एक कोटेशन है, गुरु
गुलाब खत्री की कहानी से इसका ताल्लुक
सिर्फ इतना है कि उनके भी प्रेम और
मृत्यु में ज्यादा फासला नहीं था
और यह अमर कविता- कम से कम मेरे जीते
जी अमर-
उन्होंने ऐसी ही जेहनियत में लिखी थी
तुम्हारा फोन नंबर याददाश्त से लगाता
हूं, फोन पर तुम्हारा नाम उभर आता है
वान गॉग कहता था-
इस दुनिया में सिर्फ एक मर्द हुआ और
सिर्फ एक औरत,
बाकी सब संख्याएं हैं
यहां मैं एक संख्या को पहले एक नाम और
फिर एक औरत में बदलते देख रहा हूं
सोचता हूं, तुम्हीं
वह औरत हो जो इस दुनिया में मेरे लिए बनी थीं.
3.
बासठ साल के बुजुर्ग और बाइस साल की
लड़की का यह प्रेम
कैंपस का तब सबसे बड़ा स्कैंडल था
गुरू के कुछ पुराने दोस्तों और कुछ
उनसे भी पुराने दुश्मनों ने
एक दिन स्मोकिंग जोन में उन्हें
साथ-साथ घेर लिया
और पूछा कि ऐसा माल उन्होंने आखिर
पटाया किस तरह.
एक सिद्ध लंपट सार्वजनिक रूप से उनके
सामने नतमस्तक हुआ
अपनी काल्पनिक हैट सिर से उतारते हुए
बोला- गुरू हैट्स ऑफ टु यू
एक और ने उससे भी ज्यादा सम्मान, ईर्ष्या
और लगाव से पूछा-
महीने में आप इसके ऊपर कुल कितना खर्च
कर देते होंगे?
खर्च के मामले में गुरू का हाथ कभी तंग
नहीं रहा
लेकिन उस दिन शपथ खाकर उन्होंने कहा
कि आज तक कभी भी साथ खाने का बिल
उस लड़की ने मुझे देने नहीं दिया है.
पता नहीं क्यों इतने हल्के क्षणों में
भी
इस रिश्ते पर उनसे बात करने में मुझे
खौफ सा होता था
लगता था, इसके लिए कोई उन्हें
मार डालेगा
या किसी दिन इसके बोझ से कुचलकर वे खुद
ही मर जाएंगे-
इश्क मीर एक भारी पत्थर है, कहां
तुझ नातवां से उठता है.
4.
मेरी तरफ से हैट्स ऑफ उस लड़की के लिए, जो
उनसे मिली, जुड़ी
और हटी तो इस एहतियात के साथ कि इसका
झटका उन्हें मार न डाले
लेकिन अफसोस, गुरू
को मौत से बचाने के लिए इतना काफी नहीं था
मुझे लगता है, अलग
होने के बाद भी उन्हें
आपस में बातें करना बंद नहीं करना
चाहिए था.
एक बार मैंने पूछा- गुरु गुलाब खत्री,
क्या आप अपनी पत्नी से भी प्यार करते
थे?
गुरू तब कुछ बोले नहीं, सोचते
रहे और खामोश हो गए
अपने सवाल का जवाब मुझे मालूम था, सिर्फ
उनके मुंह से सुनना चाहता था
यह जानने के लिए कि
उनकी मौत के बाद अचानक वे इतने
लिबर्टाइन क्यों हो गए थे.
अपने करियर, अपनी
ही दुनिया में खोई रहने वाली
वह लड़की गुरू से प्रेम क्यों करने
लगी-
प्रेम के कई अन्य रहस्यों की तरह यह भी
मुझ पर कभी अयां नहीं होगा
गुरू बताते थे- वह बर्फ की सिल्ली नहीं
देख पाती
बचपन में उसकी आंखों के सामने उसके
पिता की देह उसपर लिटाई गई थी.
इडिपस कॉम्प्लेक्स?
झट से मेरे मन में एक कीड़ा उछला और पट
से मैंने उसे मारा
ब्रांडिंग के इस झोंक में न जाने कितने
खूबसूरत रिश्तों का कत्ल होते देखा है
इस बार नहीं.
5.
जो भी था, जैसा
भी था
इसके लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया
कन्नी भारद्वाज,
या जो भी तुम्हारा नाम हो
तुम्हारे घुटनों तक भी पहुंचने लायक हम
नहीं हैं
अपने दायरे से बाहर किसी से प्यार हम
कर नहीं सकते
हमारी तो कविताएं भी घूम-फिर कर हमारे
ही गुन गाती हैं.
और उस रात की घटाटोप तनहाई में
फालिज की बिजली जब गुरु गुलाब खत्री पर
गिरी
तो उनकी आखिरी ख़मोशियों में तुम्हारी
ही यादें उनके साथ रही होंगी
हम तो उनके कानों की सुन्न झिल्लियों
के सामने
वादे ही करते रह गए कि आप ठीक हो
जाएंगे तो यह करेंगे
और जिस दिन आप साथ में बाजार चलेंगे, उस
दिन वह करेंगे.
हम झूठ बोल रहे थे
उनके बुझे हुए दिल को देने के लिए
हमारे पास कुछ नहीं था.
चन्द्रभूषण |
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नंदा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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