Monday, February 26, 2018

तुम्हें 2019 की चिंता है मैं 2119 को देख रहा हूँ

स्वीडिश चित्रकार मिया साल्बर्ग की पेन्टिंग 'द लास्ट बस'

अंतिम आशा
-कृष्ण कल्पित

जो मंदबुद्धि यह सोच रहे हैं कि
मौज़ूदा सरकार का तख़्ता-पलट होने के बाद रामराज्य आ जायेगा
वे मुग़ालते में हैं और बहुत कम सोच रहे हैं
तुम देश के बारे में सोच रहे हो
जबकि यह पूरी पृथ्वी अंदेशों से घिरी हुई है
एक काली छाया मंडराती रहती है इसके चारों ओर
तुम्हें २०१९ की चिंता है
मैं २११९ को देख रहा हूँ
अभी यह दुनिया और रसातल में जायेगी
सात सौ समुद्रों का पीछा सात सौ समुद्री-डाकू कर रहे हैं
स्त्रियों को सताया जाता रहेगा
दलितों-आदिवासियों के घर जलाये जाते रहेंगे
कमज़ोर को अपराधी ठहराया जाता रहेगा
क्लासिक-फ़ासीवाद की सतत प्रतीक्षा में बैठे कवियो
अभी यह दुनिया अधिक बर्बर होगी
लुटेरों ने कहर बरपा रखा है
धर्म अभी सबसे बड़ा अधर्म है
राष्ट्र और लोकतंत्र नहीं
मनुष्यता अभी ख़तरे में है
मनुष्य इन दिनों सर्वाधिक गिरा हुआ आदमी है
यह ऐसा समय है
जब टेलीफ़ोन की घँटी बजती है तो लगता है
मौत की घँटी बज रही है
९ बजकर ३० मिनट पर
अजमेरी गेट से जगतपुरा जाने वाली ३०९ नम्बर की
सिटी-बस ही अब अंतिम आशा है !

2 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गोपेश मोहन जैसवाल said...

कृष्ण कल्पित ने 2119 का जो भयावह स्वप्न देखा है, उसको साकार होने में 101 साल नहीं लगने वाले. ऐसे दुर्दिन जल्दी ही आने वाले हैं. और यह भी सही है कि हम दुनिया भर की फ़िक्र भले ही कर लें पर हमारी बुनियादी ज़रूरतें तो सिटी बस, राशन, तेल, पानी, ईएमआई और बच्चों की फ़ीस तक सिमट कर रह जाती हैं.