Wednesday, October 10, 2007

हालीना पोस्वियातोव्सका की एक कविता


वे मुझे शब्द दिखलाते हैं


वे मुझे शब्द दिखलाते हैं
वे कहते हैं
गुलाबों की महक पाई जा सकती है शब्द में
लेकिन मुझे कागज मिलता है-कागज, और ज्यादा कागज
न महक
न रंग


और मैं जानती हूँ
कि जब हम खड़े होते हैं दस साल वाले दो लड़कों के साथ
और कामगार रेल की पटरियों की वैल्डिंग कर रहे होते हैं
उस वक्त
निकलने वाली चिंगारियों की बौछार
का अर्थ रोशनी होता है
`रोशनी´ शब्द से ज्यादा

और जब व्हीलचेयर पर बैठा मेरा लकवाग्रस्त दोस्त
मेरी दी हुई डबलरोटी का एक टुकड़ा काटता है
और अपना सिर झुकाता है
तब उसके जबड़ों की हरकत में
ज्यादा जीवन होता है
बजाय `जीवन´ शब्द के।


*पोलैंड की रहने वाली हालीना पोस्वियातोव्सका (१९३५ - १९६७) इधर के एकाध दशकों में पोलिश आलोचकों की निगाह में आई हैं। अपने बहुत संक्षिप्त जीवन को उन्होने जिस बहादुरी और जिन्दादिली से जिया, वह एक मिसाल है।

2 comments:

Divine India said...

सच में यह कविता किसी भी प्रशंसा से परे है…
बहुत अच्छी प्रस्तुति की… वैसे भी ऐसी अनूठी कविता आसानी से पढ़ने को मिलती कहाँ है…
मेरा साधुवाद स्वीकार करें।

Manish Kumar said...

बहुत खूब ! आभार यहाँ प्रस्तुत करने का