Friday, October 12, 2007

स्वागत से पहले नए कबाड़ी ने पोस्ट चेप दी साब। जे खतरनाक दिक्खे

आओ भुला काकू। उमेश डोभाल की कविता से जबर्जस्त टैप घुसे हो कबाडियों के मजमे में। पहले ही बड़बाज्यू का नाम ले लिया था तुम ने तो सुफारिस में । अपनी घुच्ची खेलने के दिन याद करो और गद्द लिख भेजो जल्दी। इस टैप का कबाड़ कम पड़ रिया। ओर बा की डुमाण्ड जादे हो रक्खी। एक सायरी सुन लेव : 'बो खुसी मिली है मिज्कू, मैं खुसी सी मर्ना जाऊं।' सारा कबाड़खाना भी जई कैता दिक्खै।

1 comment:

siddheshwar singh said...

गद्द लिखो भई गद्द लिखो