Thursday, October 11, 2007

वीरेन डंगवाल की कविता


हिंदी कवियों में आज वीरेन डंगवाल का नाम बड़ी ही इज़्ज़त से लिया जाता है. वो न सिर्फ़ शानदार शायर हैं, जानदार आदमी भी हैं. "यार मैं भी कितना बड़ा चूतिया हूं" कह कर एक पल में आपको अपनी आभा से बाहर पटक देते हैं. आभा बनाने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की, वो तो उन्हें अपनी कविताओं से ही हासिल है. सुनिये वीरेन दा की कविताओं मे से एक कविता "कुछ नई क़समें", जो चार-एक साल पहले उन्होंने अपनी किताब दुश्चक्र में सृष्टा के रिलीज़ फ़ंक्शन में सुनाईं थीं. इसे आप टूटी हुई बिखरी हुई पर वीरेन डंगवाल लेबल में १५ अगस्त २००७ को सुन चुके हैं. यहां अशोक भाई के इसरार पर दोबारा.



2 comments:

Ashok Pande said...

इस कविता के बाद हमारे कबाड़खाने के माल का रैट बढ़ाया जा रिया हैगा। नफै का नब्बे परसेन्ट इरफा़न के हिस्से आगा।

शिरीष कुमार मौर्य said...

अशोक दा
वीरेन दा का 14 मई 2004 की रात का वो काव्यपाठ याद है
जिसमें डूबकर हमने एक भूली हुई जलती मोमबत्ती से गुसलखाने में आग लगाई थी।
रानीखेत की कितनी सुन्दर रात थी वो जब तुम दोनो नैनीताल से पधारे थे।
गौतम के साथ जोरदार पंगा हुआ था वीरेन दा का !