Thursday, October 11, 2007

'पीले दैत्य का नगर' : ४


(कुछ दिन पहले मैंने गोर्की की किताब ' पीले दैत्य का नगर ' का पहला अध्याय प्रस्तुत किया था। उसके बाक़ी हिस्से पढने की एकाध मित्रों ने इच्छा जाहिर की है। पेश है इसका एक और अध्याय 'ऊब का साम्राज्य'। इस पुस्तक का अनुवाद जल्दी ही ‘संवाद प्रकाशन’ से आ रहा है।)

ऊब का साम्राज्य

जब रात उतरती है समुद्र पर रोशनियों का एक प्रेतनगर आसमान की तरफ उठना शुरू करता है। अंधेरे में जगमग करती अनन्त चिंगारियों की चमक है जो शालीनता के साथ आकाश की काली पृष्ठभूमि में रंगीन क्रिस्टल के आश्चर्यजनक महलों मन्दिरों को उकेरती है। हवा में एक सुनहरा जाल थरथराता है और खुद को आग के एक चमकीले पैटर्न में बुन कर समुद्र के पानी में अपने प्रतिविम्ब को सराहता गतिहीन टंग जाता है। यह आग आकर्षक और अस्पष्ट है जो जलती तो है पर चीजों को निगलती नहीं; आकाश और समुद्र के सूने विस्तार में आग के किसी शहर के जादुई दृश्य की रचना करती इसकी झलमल बेइन्तहा खूबसूरत है। इसके ऊपर एक लाली मंडराती है और पानी उसके आकार को वापस दिखाता हुआ पिघले सोने की जादुई छपछपाहट में उसे एकाकार कर लेता है …

रोशनियों के इस खेल को देखकर दिलचस्प ख्याल आते हैं: ऐसा महसूस होता है कि यहां इस जगमग में महलों के कमरों में संगीत की आवाज इस कदर मीठी होगी जैसी पहले कभी न सुनी गई हो। धरती के श्रेष्ठतम विचार पंख लगे सितारों की तरह इस संगीत में बहते आएंगे। वे अपने दैवीय नृत्य में एक दूसरे का स्पर्श करेंगे और क्षणिक आलिंगन के इन पलों में एक नई रोशनी और नए विचारों का सृजन करेंगे।

ऐसा महसूस होता है कि वहां उस मखमली अंधेरे में सुनहरे धागों फूलों और सितारों से बना कोई महान झूला समुद्र की हिलकोरती छाती पर धीरे धीरे अपने भीतर सूरज को सुबह होने तक पनाह दिए है।

सूरज आदमी को वास्तविकता के नजदीक ले कर आता है। दिन की रोशनी में आग का यह शानदार शहर असल में सफेद हवाई इमारतों का समूह भर होता है।

समुद्र की सांस की नीली धुंध शहर के गाढ़े सलेटी धुंए से मिलती है ; नाजुक सफेद इमारतें एक पारदर्शी नकाब के पीछे हैं और एक मृगतृष्णा की तरह झिलमिलाती हुईं वे अपने पास बुलाती हैं किसी खूबसूरत थपकाती चीज देने का वायदा करती हुईं।

उधर पृष्ठभूमि में धुंए और धूल के बादलों के बीच शहर की चौकोर इमारतें पसरी हुई हैं और हवा उनके अतृप्त भूखे शोर से भरी हुई है।

हवा और आत्मा को कंपा देने वाला यह शोर¸ इस्पात के तने हुए तारों की यह लगातार चीख¸ सोने की ताकत द्वारा जीवन की परास्त की गई शक्तियों की यह त्रासद कराह और पीले दैत्य की ठण्डी चिढ़ाती सीटी - ये सारी आवाजें आदमी को धरती से दूर ले जाती हैं: पराजित और शहर की बदबूदार देह द्वारा कुचला हुआ। इसलिए लोग समुद्र के किनारे जाते हैं जहां ये शानदार सफेद इमारतें शान्ति और सुख का सपना दिखाती हैं।

वे एक दूसरे सटी हुईं बालू के लम्बे खड्ड पर काले पानी पर किसी तलवार की तरह धंसी हुई हैं। धूप में बालू चमकती है और ये सफेद इमारतें पीले मखमल पर सफेद रंग की किसी जटिल कशीदाकारी जैसी नजर आती हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई इस बालू में आया था और अपनी शानदार पोशाक किनारों के सीने पर उछालकर पानी में कूद गया था।

आदमी को जोरों की इच्छा होती है कि वह वहां जाकर इस मुलायम वस्त्र को छुए उसकी महंगी सिलवटों के बीच पसरे और उस विराट विस्तार को देखता रहे जहां बिना शोर किए सफेद परिन्दे उड़ा करते हैं जहां समुद्र और आसमान सूरज की तपती निगाह के नीचे पसरे रहते हैं।

यह कोनी आइलैण्ड है।

सोमवार को इसके अखबारों ने विजयभाव से अपने पाठकों को बताया था :

“कल तीन लाख लोग कोनी आइलैण्ड देखने पहुंचे। तेईस बच्चे खो गए।”

… कोनी आइलैण्ड तक की यात्रा बहुत लम्बी हैः आप स्ट्रीटकार से ब्रुकलिन की धूल और शोर से अटी सड़कों और लांग आइलैण्ड से होते हुए इस द्वीप की चमकीली शान तक पहुंचते हैं। और सचमुच जब भी कोई पहली बार रोशनियों के इस शहर के प्रवेशद्वार पर खड़ा होता है उसकी आंखें चौंधिया जाती हैं। यह शहर उसकी आंखों में हजारों ठण्डी सफेद चिंगारियां फेंकता है और बहुत देर तक इस चमकदार धूल में उसे कुछ नजर नहीं आता। उसके चारों तरफ हर चीज आगभरे झाग का एक तूफानी चक्रवात है जिसके भीतर हर चीज घूमती हुई चमकती हुई उसे अपनी तरफ बुलाती है। आदमी तुरन्त भौंचक्का रह जाता है। उसका दिमाग इस चमक के कारण कुन्द पड़ जाता है। उसके सारे विचार मिट जाते हैं और वह भीड़ में एक कण में तब्दील हो जाता है। जगमगाती रोशनियों के बीच हकबकाए दिमागों वाले लोग निरुद्देश्य भटकते रहते हैं। उनके मस्तिष्कों के भीतर एक सफेद धुंध प्रविष्ट हो जाती है और उत्सुकतापूर्ण उम्मीद उनकी आत्माओं पर एक कफन जैसा डाल देती हैं।रात के तमाम कोनों पर मढ़े हुए रोशनी के गतिहीन तालाब के भीतर भौंचक्के लोगों का लगातार आना बना रहता है।

नन्हे लैम्प हर चीज के ऊपर एक ठण्डी और सूखी रोशनी डालते हैं। वे सारे खम्भों और दीवारों पर लगे हुए हैं ¸ वे इमारतों की खिड़कियों पर हैं¸ वे पावर स्टेशन की ऊंची चिमनियों पर तरतीबवार लगे हुए हैं¸ वे तमाम छतों पर चमक रहे हैं ¸ अपनी निर्जीव जगमग की तीखी सुइयां लोगों की आंखों में चुभोते हुए – मूखो की तरह मुस्कराते हुए आंखें झपकाते लोग जमीन पर घिसटते जाते हैं मानो वे किसी उलझी हुई जंजीर की कड़ियां हों।

इस भीड़ में अपने आप को पाने के लिए बिना आनन्द या खुशी के आश्चर्य से कुचल चुके आदमी को बहुत श्रम करना पड़ता है।और जब वह अपने आप को पा लेता है उसे दिखता है कि ये लाखों लैम्प एक बोझिल प्रकाश फेंक रहे हैं जिसके भीतर एक तरफ तो सुन्दरता की तरफ कोई संकेत है और वहीं वह आसपास की बदसूरती को पूरी तरह विवस्त्र भी कर देता है। दूर से किसी तिलिस्म जैसा दिखने वाला यह शहर अब एक अर्थहीन खोह जैसा दिखता है जिसमें बच्चों का मनोरंजन करने के लिए किसी बूढ़े अध्यापक ने जल्दीबाजी में कुछ इमारतें खड़ी कर दी हों – बूढ़ा अध्यापक बच्चों की खुराफातों के कारण चिन्तित था और उनके खिलौनों की मदद से उनको तमीज सिखाना चाहता था। कई तरह की दर्जनों सफेद इमारतों के भीतर सौन्दर्य का जरा भी पुट नहीं है। वे सब लकड़ी की बनी हुई हैं और उनके बाहर लगा हुआ सफेद रंग पपड़ी बन कर उखड़ रहा है। ऐसा लगता है वे सब एक से चर्मरोग की शिकार हैं। ऊंची मीनारें दो लम्बी कतारों में दूर तक बिना किसी सुरूचि के खड़ी हैं। रोशनियों की निष्पक्ष चमक के आगे हर चीज नंगी बना दी गई है। वह हर जगह है और कहीं कोई छायाएं नहीं हैं। हर इमारत मुंह खोले सामने ताकते अहमकों जैसी नजर आती है और हरेक के भीतर आप धुंए के बादल देख सकते हैं पीतल और आर्गन का शोर सुन सकते हैं और लोगों की काली आकृतियां देख सकते हैं। खाते हुए पीते हुए और धुंआ उड़ाते लोग।

लेकिन आदमी की आवाज नहीं सुनाई पड़ती। हवा आर्कलाइट्स की एकसार फुंफकार ¸ संगीत के गरीब टुकड़ों और लकड़ी के पाइपों की पवित्र शिकायत से भरी हुई है। यह सारा कुछ एक उबाऊ गुनगुनाहट में डूब जाता है मानो कोई मोटी तनी हुई रस्सी हो और जब भी कोई मानवीय आवाज इस न थमने वाली गुनगुन तक पहुंचती है वह एक भयभीत फुसफुसाहट जैसी सुनाई देती है। हर चीज शिकायत करती सी चमकती है अपनी भयानक बदसूरती को प्रकट करती हुई।

आपकी आत्मा के भीतर एक जिन्दा लाल फूलभरी लपट की इच्छा लपकती है जो लोगों को इस अंधा और बहरा कर देने वाली रोशनी से मुक्त करे। आपकी इच्छा होती है कि इस सब सौन्दर्य को आग लगा दी जाए और इस बेजान अध्यात्मिक निर्धनता की महानता के विनाश का उत्सव मनाया जाए।
वास्तव में कोनी आइलैण्ड ने हजारों लोगों को अपनी गुलामी में जकड़ा हुआ है। इसके विशाल क्षेत्रफल के भीतर वे काले मक्खियों के बादलों जैसे मंडराया करते हैं – एक दूसरे से सटे पिंजरों जैसे कमरों और इमारतों के गलियारों के भीतर। गर्भवती महिलाएं अपने पेटों का भार सम्हालती हुईं आराम से टहला करती हैं। खामोश बच्चे अपने चारों तरफ की चमक को विस्फारित आंखों के साथ देखते चलते है और आपके भीतर उनके लिए गहरी दर्दभरी संवेदना पैदा होती है क्योंकि अपनी आत्मा में पल रही बदसूरती को वे सौन्दर्य समझ रहे होते हैं। घुटी दाढ़ी मूंछों वाले लोग अजीब तरह से एक से नजर आते हैं और उनके चेहरे भारी और संवेदनाहीन हैं। उनमें से कई अपने बीवी बच्चों को साथ लाए हैं और वे अपने परिवारों को रोटी के साथ साथ इस दृश्य को उपलब्ध कराने के गौरव से भरपूर हैं। खुद उन्हें यह जगमग पसन्द है लेकिन वे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिहाज से काफी गंभीर हैं सो वे अपने होंठ भींचे रहते हैं अपनी आंखों को संकरा कर लेते हैं और उनकी मुखमुद्रा किसी ऐसे आदमी की सी होती है जिसे कोई भी चीज प्रभावित नहीं कर सकती। तो भी प्रौढ़ अनुभव से पाई हुई इस बाहरी शान्ति के पीछे उस सब चीज को भोगने की इच्छा नजर आती है जो इस जादुई शहर के पास पेश करने को है। सो ये सम्मानित लोग अपनी आंखों की खुशी को नपेतुले तरीकों से छिपाते हुए लकड़ी के घोड़ों पर सवार होते हैं ¸ मैरी गो राउन्ड के बिजली के हाथी पर बैठते हैं और अपनी टांगें हिलाते हुए उस पल का इन्तजार करते हैं जब उन्हें पटरियों की तरह उछाल दिया जाएगा और फिर वे हवा में ऊपर नीचे फेंके जाने का आनन्द ले सकेंगे। इस झटकेदार यात्रा के समाप्त होने के बाद वे अपने चेहरे पर की त्वचा को फिर से फैला लेते हैं और दूसरे मजे की खोज में निकल पड़ते हैं …

ऐसे मनोरंजन असंख्य हैं। लोहे की एक ऊंची मीनार के ऊपर दो लम्बे सफेद पंख लगे हुए हैं जिनके कोनों पर लोगों से भरे पिंजरे लगाए गए हैं। जब उनमें से एक पंख आसमान की तरफ उठना शुरू करता है पिंजरों के भीतर के लोगों के चेहरों पर एक दर्दनाक गंभीरता छा जाती है और तनाव से भरपूर एक सी मुद्राओं के साथ वे दूर जा रही धरती को देखते रहते हैं। सावधानी से नीचे की तरफ झुकाए जाते दूसरे पंख पर लगे पिंजरे के भीतर के लोगों के चेहरे खुशी से खिले हुए हैं और प्रसन्न ध्वनियों को सुना जा सकता है। यह आवाजें उस पिल्ले की आवाज से मिलती जुलती हैं जिसे काफी देर गरदन से पकड़कर हवा में लटकाए रहने के बाद जमीन पर धरा गया हो।

एक दूसरी मीनार के छोर पर हवा में उड़ती नावें हैं। एक और तीसरी मीनार है जो धातु के बने सिलिण्डरों को गतिमान बनाती है। फिर चौथी और पांचवीं … वे सारी चमकती हुई घूमती हैं और अपनी ठण्डी रोशनी की ध्वनिहीन चीख के साथ लोगों को अपनी तरफ बुलाती हैं। हर चीज झूलती है¸ चीखती है¸ धमधमाती है और लोगों को मन्द और बोझिल बना देती हैः रोशनी की गतिमान घूमती चमक से उनके स्नायु कुन्द पड़ने लगते हैं। हल्की आंखें और भी हल्की पड़ जाती हैं मानो दिमाग से रक्त बह गया हो और अजीब सी चमकदार लकड़ी के कारण वह पीला पड़ चुका हो। और ऐसा लगता है कि आत्मघृणा के बोझ से मरती ऊब एक धीमी यातना के साथ चक्कर काटती रहती है। अपने उदासीभरे नृत्य के भीतर वह हजारों ऊबे हुए काले लोगों को ले लेती है। वह उन्हें बुहारती है जिस तरह से हवा सड़क की गन्द को बुहार कर एक पालतू ढेर में इकठ्ठा कर देती है¸ और फिर से बिखेर देती है उन्हें दुबारा इकठ्ठा करने को …।

इमारतों के भीतर भी लोगों की प्रतीक्षा करते मनोरंजन हैं लेकिन वे संजीदा किस्म के हैं - वे शिक्षित करते हैं।यहां लोगों को नर्क के दर्शन कराए जाते हैं और उन्हें बताया जाता है कि नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें किस किस तरह की यातनाएं दी जाएंगी …।

दबे कत्थई रंग की पेपरमैशी के साथ बनाया गया है नर्क को। हर चीज पर एक फायरप्रूफ पदार्थ की पर्त चढ़ाई गई है और उस से बदबू आ रही है। नर्क को बहुत खराब तरीके से बनाया गया है- बहुत कम जानकार आदमी के भीतर भी इसे देख कर उबकाई आ जाएगी। इसे लाल उदासी से भरपूर पत्थरों से भरी एक गुफा की तरह दिखाया गया है। एक चट्टान पर कत्थई पतलून पहने शैतान बैठा हुआ है। वह अपने चेहरे को विभिन्न मुद्राओं में मरोड़ता है - वह अपने हाथों को आपस में किसी सफल व्यापारी की तरह रगड़ रहा है। निश्चय ही पेस्टबोर्ड का वह पत्थर बहुत आरामदेह नहीं है जिस पर वह बैठा है लेकिन उसे कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आता। उसका ध्यान अपने पैरों पर गिरे पापियों को उसके सहायकों द्वारा दी जा रही यातनाओं पर लगा हुआ है।

एक युवा लड़की है जिसने अपने लिए नया हैट खरीदा है और वह आइने के सामने खड़ी अपने को निहार रही है। शैतान के दो नन्हे लेकिन भूखे सेवक उसे पीछे से आकर उसे बांहों से दबोच लेते हैं। वह चीखती है लेकिन तब तक देर हो चुकी है। शैतान के सेवक उसे एक लम्बी संकरी नाली में लिटाते हैं जो गुफा के बीच में एक गड्ढे की तरफ जा रही है। गड्ढे के भीतर से सलेटी धुंआ उठ रहा है और एक लाल चिमटा लड़की को हैट और आइने समेत भीतर पहुंचा देता है।

एक नौजवान व्हिस्की का एक गिलास पीता है - शैतान के सेवक तुरन्त उसे भी स्टेज के नीचे एक गड्ढे में पहुंचा देते हैं।

नर्क घुटनभरा है। शैतान के सेवक कमजोर और दुबले हैं। वे अपने काम से पूरी तरह थक गए नजर आते हैं। काम की बोझिलता और व्यर्थता से वे स्पष्टतया ऊब चुके हैं और वे पापियों को लकड़ी के गिल्टों की तरह नाली में फेंकते हैं। उन्हें देख कर चिल्लाने की इच्छा होती है: ‘बहुत हुई यह बकवास। तुम लोग हड़ताल पर क्यों नहीं जाते लड़को!’

एक युवती अपने पड़ोसी के बटुए से कुछ सिक्के चुरा लेती है। शैतान के सेवक उसे तुरन्त ठिकाने लगा देते हैं - यह देख कर शैतान बहुत खुश होता है और अपनी टांगें हिलाने लगता है। शैतान के सेवक हर उस शख्स के साथ वैसा है सुलूक करते हैं जो नर्क की तरफ देखने की हिम्मत करता है … जनता इस भयानक दृश्य को गंभीर शान्ति के साथ देखती है।

हाल में अंधेरा है।मोटी जैकेट पहने घुंघराले बालों वाला एक गठीला नौजवान उदासी भरी गहरी आवाज में लगातार भाषण देता जाता है। स्टेज की तरफ इशारा करता हुआ वह उपदेश देता है कि अगर लोग लाल पतलून वाले शैतान का शिकार नहीं बनना चाहते तो उन्हें पता होना चाहिए कि शादी करने से पहले किसी लड़की को चूमना गलत है वरना वह वैश्या बन जाएगी; चर्च की अनुमति के बिना शादी से पहले युवकों को चूमना ठीक नहीं क्योंकि इसके परिणामस्वरूप नन्हे बच्चे पैदा हो सकते हैं; वैश्याओं ने अपने ग्राहकों की जेबों से पैसे नहीं चुराने चाहिए; लोगों ने आमतौर पर शराब या ऐसी कोई चीज नहीं पीनी चाहिए जो इन्हें उत्तेजित करती हो; लोगों ने शराबखानों के बजाय चर्च जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना आत्मा के लिए बेहतर होने के साथ साथ सस्ता भी पड़ता है…। उसकी आवाज रूखी और बोझिल है और उससे यह साफ है कि जिस तरह के जीवन के बारे में वह भाषण दे रहा है खुद उस का उस सब में कतई विश्वास नहीं। पापियों के लिए इस शिक्षाप्रद मनोरंजन को देखने के बाद इस कार्यक्रम को चलाने वालों से आपकी यह कहने की इच्छा होती है: ‘महानुभावो! अगर आप चाहते हैं कि आपके कार्यक्रम के भाषण मानवों की आत्मा को शुद्ध कर सकें तो आपने अपने भाषण देने वालों को ज्यादा पैसा देना चाहिए।'

इस प्रदर्शन के बाद गुफा के एक कोने से एक फरिश्ते का प्रवेश होता है। फरिश्ते की खूबसूरती को देखकर उबकाई आ जाती है। वह एक तार से टंगा हुआ है और सुनहरे कागज से मढ़ा हुआ एक ट्रम्पेट मुंह में दबाए हवा में उड़ने का प्रभाव पैदा करता है। उसे देखकर शैतान एक मेंढक की तरह पापियों के पीछे गड्ढे में कूद जाता है। एक गड़गड़ाहट के साथ कागज के बने पत्थर गड्ढे में गिरते हैं और शैतान के सेवक अपना काम छोड़कर भाग जाते हैं। परदा गिरता है। भीड़ उठती है और हाल से बाहर चली जाती है। कुछ हिम्मती लोग हंसते हैं पर ज्यादातर गंभीर हैं। शायद वे सोच रहे हैं ‘अगर नर्क इस कदर भयानक है तो बेहतर है पाप न किया जाए।’

वे चलते जाते हैं। अगली इमारत में उन्हें ‘आने वाला कल’ दिखाया जाता है। यह भी पेपरमैशी का बना एक बड़ा कमरा है जिसके भीतर उन गड्ढों को दिखाया गया है जहां बेहद कुरूचिपूर्ण पोशाकों में मृतात्माएं निरूद्देश्य मंडराया करती हैं। आप उनकी तरफ देखकर आंख मार सकते हैं पर चिकोटी नहीं काट सकते - यह साफ है। नम हवा के कारण गीली दीवारों से बनी यह जगह बेहद हताशाभरी होगी। कुछ आत्माओं को खांसी की शिकायत है। बाकी चुपचाप तम्बाकू चबा रही हैं जमीन पर पीला बलगम थूकती हुईं। एक कोने पर दीवार से लगी एक आत्मा सिगार पीने में मसरूफ है … जब आप उन के सामने से गुजरते हैं वे अपनी रंगहीन आंखों से आप को देखती हैं वे अपने होंठ जकड़े हुए अपनी पोशाकों के सलेटी मोड़ों के भीतर अपने ठिठुरते हाथों को छिपाती हैं। वे सब बेहद गरीब बेहद भूखे लोग हैं और स्पष्टतः उनमें से कई को जोड़ों के दर्द की शिकायत है। जनता खामोशी में उन्हें देखती है और उस नम हवा को अपने नथुनों में भरती है जो इन आत्माओं को रूखी ऊब से भरती है जिस तरह एक गीला कपड़ा धीमे सुलगते अंगारों को बुझाता है …।

एक और इमारत में आप ‘बाढ़’ देख सकते हैं जिसे जैसा कि सब जानते हैं लोगों को उनके पापों की सजा देने के लिए भेजा गया था। सच तो यह है कि इस शहर के तमाम दृश्यों का एक ही उद्देश्य है: लोगों को बताना कि पापों के लिए उन्हें कहां और कैसे सजा दी जाएगी और उन्हें इस धरती पर नियमों का पालन करते हुए किस तरह भयभीत जीवन बिताना चाहिए। ‘तुम नहीं करोगे’ यह उनका एक धर्मवाक्य है। आप देख सकते हैं कि इन जगहों पर आने वाले दर्शकों में मजदूरों की बहुतायत है। लेकिन पैसा बनाया ही जाना होता है सो इस चमकीले शहर के शान्त कोनों में इस धरती की हर दूसरी जगह की तरह वासना दोगलेपन और झूठ का मजाक बनाती है। निश्चय ही यह सब छिपा हुआ होता है और नैसर्गिक तौर पर बोझिल भी क्योंकि यह भी ‘जनता के लिए’ होता है। इसे आदमी की जेब से उसकी आमदनी बाहर निकालने के उपकरण के रूप में एक व्यवस्थित व्यापार की तरह स्थापित किया गया है और बोझिलपन के इस चमकदार पाताल में यह तिगुना घृणित और उबकाईभरा है।

लोगों को इस से भोजन मिलता है। जगमग करती इमारतों की दो कतारों के बीच वे एक सघन धारा की तरह बहते जाते हैं और इमारतें उन्हें अपने भूखे जबड़ों में जज्ब कर लेती हैं। दाईं तरफ की इमारतें उन्हें अनन्त यातना का भय दिखाती हुई चेताती हैं: ‘पाप मत करो! यह खतरनाक है!’ बाईं तरफ एक बड़े डान्सहॉल में धीरे धीरे घेरे में घूमती स्त्रियां हैं। इस जगह की हर चीज घोषणा करती है: ‘पाप! यह मजेदार है …' रोशनियों की चमक से चौंधियाए हुए¸ सस्ती सुविधा के लालच में और शोर के नशे में लोग इस धीमे नाच में शरीक हो जाते हैं। बाईं तरफ पाप करने को और दाईं तरफ उन मकानों में जहां धर्म की शिक्षा दी जाती है। यह पागल कर देने वाला क्रम नैतिकता के व्यापारियों और पाप के दुकानदारों दोनों के फायदे का है। जीवन इस कदर क्रमबद्ध है कि लोग छह दिन काम करते हैं और सातवें दिन पाप। वे पाप करने के पैसे देते हैं फिर पश्चाताप करते हैं और उसके लिए भी पैसे खर्च करते हैं। बस इतना ही है। आर्कलाइटें सैकड़ों हजारों गुस्साए सांपों की तरह फुंफकारती हैं और इमारतों के जगरमगर करते नफीस जाले में फंसा लोगों का मiक्खयों जैसा झुण्ड एक बोझिल नपुंसकता के साथ भिनभिनाता है और धीमे धीमे घूमता है। बिना किसी जल्दीबाजी के बिना अपने घुटे चेहरों पर कोई मुस्कान लिए ये लोग हर दरवाजे में घुसते हैं जानवरों के पिंजरों के सामने खड़े रहते हैं तम्बाकू खाते हैं और थूकते हैं।

एक बड़े से पिंजरे के अन्दर एक आदमी बंगाली बाघों को दौड़ा रहा है। वह पिस्तौल चलाता हुआ निर्ममता से उन पर कोड़े फटकार रहा है। भय से पगलाए शोर पिस्तौल की आवाज से बहरे और रोशनियों से अन्धे हो चुके वे सुन्दर जानवर लोहे की छड़ों के बीच आगे पीछे भागते हैं : गुर्राते हुए¸ उनकी हरी आंखें चमकती हुईं¸ उनके होंठ कांपते हैं¸ उनके गुस्साए दांत नजर आते हैं¸ और जब तब उन में से एक अपना पंजा हवा में खतरनाक तरीके से लहराता है। लेकिन वह आदमी उनकी आंखों के सामने पिस्तौल चलाता है ¸ गोली की आवाज और कोड़े की फटकार से वह शक्तिशाली बाघ पिंजड़े के कोने में दुबक जाता है। गुस्सा दिलाने वाले अपमान से भरा वह मजबूत कैदी पशु अपने कोने में पल भर को ठहर कर सांप जैसी पूंछ को घबराहट में हिलाते हुए अपने सामने पगलाई आंखों से निगाह डालता है। उसकी चुस्त देह एक पल को मज्जाओं की एक मजबूत संरचना में बदलती है और वह उछलकर उस आदमी पर हमला बोलने और और उसके टुकड़े करने को तत्पर हो जाता है …। उसके पिछले पैर उचकते हैं गरदन सामने की तरफ आती है और उसकी हरी आंखों में आनन्द के लाल अंगार चमक उठते हैं। पिंजरे की छड़ों के बाहर के बोझिल तांबई रंग के साथ एक जैसे चेहरों का बेरंग ठण्डी और उत्सुकता से भरपूर निगाह मिलकर बाघ की पलकों को जैसे हजार कांटों से बींध देती है। अपनी बेजान गतिहीनता में भयभीत कर देने वाला भीड़ का चेहरा इन्तजार करता है - भीड़ को भी खून देखना है और वह उस के लिए इन्तजार कर रही है। उसका इन्तजार किसी बदले से प्रेरित नहीं है बल्कि केवल इस उत्सुकता से कि देर से पालतू बनाया गया बाघ कितनी देर तक प्रतीक्षा करेगा। बाघ अपना सिर अपने कन्धों में रखता है ¸ दर्द में उसकी आंखें चौड़ी हो जाती हैं और एक लहरदार गति के साथ वह अपनी देह को ढीला छोड़ देता है मानो बदले की प्यास के उत्तेजित उसकी देह पर किसी ने बर्फ की बरसात कर दी हो। आदमी गोली चलाता है कोड़ा फटकारता है और पागलों की तरह चीखता है - वह बाघ के सामने होने के अपने भय से पार पाने के लिए चीखता है और उस भीड़ को खुश करना चाहता है जो बाघ की निणार्यक छलांग का इन्तजार कर रही है। वह भी इन्तजार कर रहा है। उसके भीतर एक आदिम इच्छा पैदा हो गई हैः वह युद्ध करना चाहता है¸ वह चाहता है उस चरमानन्द को महसूस करना जब दो शरीर एक दूसरे से भिड़ेंगे¸ खून का फव्वारा निकलेगा और मनुष्य का मांस उड़ता हुआ पिंजड़े के फर्श पर गिरेगा और हवा चिंघाड़ और चीख से भर जाएगी …।

लेकिन लोगों के झुण्ड के भीतर विभिन्न विरोधाभासी बातें आने लगी हैं। खून देखने की प्यास है भी और नहीं भी लेकिन वह अंधेरी प्यास बनी रहती है - जीवित …। उस आदमी ने सारे जानवरों को भयभीत कर दिया है। दबे पांव पीछे लौटते हुए बाघ पिंजरे से लगकर खड़े हो जाते हैं और एक और दिन जीवित बचे रहने के सुकून के साथ पसीना पसीना हो चुका वह आदमी बेजान होंठों से मुस्कराता है जिनके कम्पन को उसे छिपाना पड़ता है। फिर वह तांबई भीड़ की दिशा में झुक कर उसका अभिवादन करता है मानो किसी देवता की पूजा कर रहा हो। भीड़ चीखती चिल्लाती है तालियां बजाती है और गहरे थक्कों में बिखरती है और अपने चारों तरफ की ऊब की चिपचिप में रेंगती जाती है …। जानवर के साथ मनुष्य की लड़ाई देखने का आनन्द ले चुकी भीड़ अब दूसरे मनोरंजन की तरफ जाती है।

यहां एक सर्कस चल रहा है। रिंग के बीचोबीच एक आदमी अपनी लम्बी टांगों की मदद से दो बच्चों को हवा में उछाल रहा है। टूटे पंखों वाले फाख्तों जैसे बच्चे उसके सिर के ऊपर तक पहुंचते हैं। जब तब वे उसके पैरों पर वापस नहीं आते और जमीन पर गिर जाते हैं। वे भय के साथ उस आदमी के उत्तेजित चेहरे को देखते हैं जो उनका पिता या मालिक हो सकता है। कुछ देर बाद वे दुबारा हवा में होते हैं। भीड़ रिंग के चारों तरफ इकठ्ठा है। वे सब निगाह फाड़े देख रहे हैं और जब भी कोई बच्चा नीचे गिरता है भीड़ में एक धीमा शोर उभरता है जिस तरह हल्की हवा से कीचड़भरे दलदल की सतह पर हल्की लहरें बनती हैं।

चमकते चेहरे वाले किसी शराबी को गिरते लड़खड़ाते गाते चीखते देखना अच्छा लगेगा क्योंकि वह नशे के कारण प्रसन्न होगा और हर किसी को प्रसन्न होने की दुआ देगा। संगीत शुरू होता है - हवा को चीथड़े करता हुआ। बैण्ड खराब है और संगीतकार थके हुए हैं। बजाए जा रहे सुरों में कोई सामंजस्य नहीं है और वे लड़खड़ा रहे हैं। वे एक दूसरे को गड़बड़ाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। पता नहीं क्यों पर मुझे अपनी कल्पना में हरेक सुर टिन की चादर जैसा लगता है जिसे मानव आकृति दे दी गई हो। एक मुंह¸ आंखें¸ नाक के लिए एक छेद और दो लम्बे सफेद कान। संगीतकारों के सिरों के ऊपर एक आदमी अपना बेटन चला रहा है पर वे उसे नहीं देखते। वह आदमी धातु के इन टुकड़ों को कानों से पकड़ता है और हवा में उठा देता है। उनके टकराने से आवाज निकलती है और एक ऐसा संगीत निकलता है जिस से यहां तक कि सर्कस के घोड़े भी बचना चाहते हैं। गुलामों के मनोरंजन के लिए सुनाए जा रहे भिखारियों के इस संगीत के कारण अजीब अजीब कल्पनाएं आती हैं। आपकी इच्छा होती है कि सबसे बड़े ट्रम्पेट को संगीतकार के हाथ से छीन लिया जाए और ऐसी आवाज निकाली जाए कि सारे लोग उस से बच कर भाग जाएं।

ऑर्केस्ट्रा के नजदीक एक पिंजड़ा है जिसके भीतर भालू हैं। उनमें से एक जो मोटा और चतुर आंखों वाला है¸ पिंजरे के बीचोबीच खड़ा है और लय के साथ अपना सिर हिला रहा है। ऐसा लगता है कि वह सोच रहा है: 'मैं इस सब को तभी तार्किक मान सकता हूं अगर मुझे दिखाया जाए कि यह सब जान बूझ कर किया जा रहा है ताकि लोगों को अन्धा बहरा और विकलांग बनाया जा सके। … लेकिन अगर लोग वाकई सोचते हैं कि यह मनोरंजक है तो मुझे उनकी मानसिक शक्ति पर जरा भी यकीन नहीं है।' एक दूसरे के सामने दो भालू इस तरह बैठे हैं मानो शतरंज खेल रहे हों। एक चौथा वाला पिंजरे के कोने पर शालीनता के साथ एक छड़ से खेल रहा है। उसके चेहरे पर धिक्कार की ठण्डक है। स्पष्टत: उसे इस जीवन में किसी चीज की आशा नहीं रह गई है और वह सोने का फैसला कर चुका है।

इन पशुओं को देखकर अजीब दिलचस्पी पैदा होती है - लोगों की पानीदार आंखें उनकी हर गति का पीछा करती हैं मानो वे शेरों और तेंदुओं की शक्तिशाली गतियों और उनकी सुन्दर देहों में कोई पुरानी भूली हुई चीज खोज रहे हों। पिंजरों के बगल में खड़े हुए वे छड़ों के बीच से लकड़ी की डंडियों को इन पशुओं के पेटों और बगलों में चुभोते हैं और उत्सुकता के साथ देखते हैं कि अब क्या होगा। वे जानवर जिन्होंने अभी मनुष्य के व्यवहार को नहीं जाना है¸ अपमान के कारण अपने पंजे पिंजरे की छड़ों पर मारते हुए गुर्राते हैं और उनके खुले जबड़ों में गुस्सा साफ देखा जा सकता है। लोहे की छड़ों के कारण जानवरों से सुरक्षित लोग चुपचाप पशुओं की खूनभरी आंखों में देखते रहते हैं और संतुष्टि में मुस्कराते हैं। लेकिन ज्यादातर जानवर मनुष्य के लिए जरा भी आदर नहीं दिखाते। लकड़ी खुभोए जाने या थूक दिए जाने पर वे चुपचाप उठकर पिंजरे के कोने पर चले जाते हैं। उस उदासी में शेरों¸ बाघों¸ तेंदुओं की ताकतवर शालीन देहें पड़ी होती हैं और अंधेरे में उनकी आंखों में आदमी के लिए नफरत चमकती है।

और उनकी तरफ एक बार और देखने के बाद लोग यह कहते हुए आगे बढ़ जाते हैं: ‘ये वाला जानवर खेलता ही नहीं।’

संगीतकारों के सामने एक खम्भा है जिस से दो बन्दर - एक मादा और एक शिशु - पतली जंजीर से बंधे हुए हैं। बच्चा मां से चिपका हुआ है और उसकी लम्बी बांहें मां की गरदन से लिपटी हैं। मां ने एक बांह से बच्चे को कस कर पकड़ा हुआ है जबकि दूसरी थकान के कारण सामने फैली हुई है - उसकी उंगलियां वार करने को तैयार हैं। मां की आंखें तनाव से भरी हैं और वे एक अशक्त हताशा को अभिव्यक्त कर रही हैं - एक अवश्यंभावी चोट का यातनापूर्ण इन्तजार और एक थका हुआ गुस्सा उन में है। मां की छाती से सिर चिपकाए बच्चा अपनी आंख के कोनों से लोगों को देख रहा है - जीवन के पहले ही दिन से उसने भय को जाना है और उसके जीवन के बाकी दिनों के लिए भय उसके भीतर पत्थर बन चुका है।एक भी पल को बच्चे को न छोड़ती हुई और अपने नन्हे दांत दिखाती हुई मां लगातार दर्शकों द्वारा चुभोई जा रही छड़ियों और छाताओं से खुद को और बच्चे को बचा रही है।

ये कितने सारे गोरे लोग हैं - आदमी और औरतें - तमाम तरह की हैट और टोपियां पहने हुए और उन्हें यह देखना मनोरंजक लगता है कि अपने नन्हे शरीर की तरफ बढ़ाई जाती चोटों से एक बन्दरिया किस फुर्ती से अपने बच्चे को बचा लेती है। दोनों जल्दी से तश्तरी के आकार की एक गोल सतह पर चले जाते हैं। इस बात का जोखिम है कि वे कभी भी दर्शकों के पैरों पर गिर सकते हैं। बन्दरिया बिना हारे उन सारे हाथों को हटाने की कोशिश करती रहती है जो उसके बच्चे को छूना चाहते हैं। जब तब वह अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं होती और एक दयनीय रूदनभरी आवाज निकालती है। उसकी बांहें एक कोड़े की तरह हिल रही हैं लेकिन दर्शकों की तादाद बहुत ज्यादा है और सारे के सारे बन्दर को छूना चाहते हैं उसकी पूंछ को छेड़ना चाहते हैं या उसकी गर्दन में बंधी जंजीर को झटका देना चाहते हैं। और वह सब को एक साथ काबू नहीं कर सकती। उसकी आंखें दयनीय तरीके से कांपती हैं और उस के मुंह के कोनों पर दर्द और त्रासदी की रेखाएं घिर आती हैं। बच्चे की बांहें मां की छाती से इतनी ताकत से चिपकी हुई हैं कि उसकी उंगलियां मां के पतले बालों में अदृश्य हो गई हैं। उसकी आंखें पीले चेहरों पर अटकी हैं उन लोगों की निगाहों पर जिन्हें उन दोनों की तकलीफ से आनन्द आ रहा है। जब तब एक संगीतकार अपने मूखर्तापूर्ण ट्रम्पेट को बन्दरिया के कान के बिल्कुल पास लाकर बजाता है और उसे कानफोड़ू आवाजों में डुबो देता है। अपने दांत दिखाती हुई बन्दरिया गुस्सैल आंखों से अत्याचारी की तरफ देखती है। भीड़ हंसती है और संगीतकार के कृत्य का समर्थन करती है। वह प्रसन्न हो जाता है और एक क्षण बाद अपना प्रदर्शन दोहराता है।

दर्शकों में स्त्रियां भी हैं; निश्चय ही उनमें से कुछ मांएं भी होंगी। लेकिन उनमें से कोई भी इस दुष्टता के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहती। उन सब को इस में मजा आ रहा है। कुछ आंखें मां और शिशु की यातना को देखते रहने के तनाव से फटने को ही हैं।

बैण्ड के आगे एक बुजुर्ग और सज्जन हाथी का पिंजरा है जिसके सिर की त्वचा गन्दी और चमकदार है। उसने अपनी सूंढ़ छड़ों से बाहर निकाली हुई है और वह जनता को देखता हुआ कुछ सोच रहा है। और बुद्धिमान जानवर होने के कारण वह सोच रहा है कि: ‘निश्चय ही ऊब के गन्दे झाड़ू से बुहारी हुई यह गन्दगी खुद अपने मसीहाओं का मजाक बना पाने में सक्षम है - मैंने बूढ़े हाथियों को ऐसा कहते सुना है। लेकिन मुझे बन्दर पर दया आ रही है। … मैंने सुना है कि आदमी भी कभी कभी एक दूसरे को भेड़ियों की तरह फाड़ डालते हैं लेकिन अफसोस इस बात से बन्दर का जीवन आसान नहीं बनने जा रहा।' … आप एक बार अपने बच्चे को बचा पाने में अक्षम मां को देखते हैं फिर आप मनुष्य से भयभीत बच्चे की आंखें देखते हैं और उसके बाद लोगों को जिन्हें किसी जीव को यंत्रणा देने में आनन्द आता है। उसके बाद आप बन्दर की देखकर फुसफुसाते हैं: ‘प्यारे जानवर! इन्हें माफ कर दो! समय के साथ साथ ये बेहतर हो जाएंगे!' निश्चय ही यह बेवकूफीभरा और हास्यास्पद है। और बेकार भी। क्या कोई मां अपने बच्चों को यातना देने वाले को माफ कर सकती है? मैं नहीं समझता कुत्तों तक में ऐसी माताएं होती हैं …।

सूअरों में शायद होती हों …।

खैर खैर।

और तब - जब रात आती है - समुद्र किनारे पर रोशनियों का एक जादुई शहर जगमगाता है। वह बहुत देर तक चमकता है - बिना जले हुए - रात के आसमान की काली पृष्ठभूमि में- और उसका सौन्दर्य समुद्र में प्रतिविम्बित होता है। चमकीली इमारतों के झपझपाते जाल में बेरंग आंखों वाले हजारों हजार लोग भिखारी के चीथड़ों में जूं की तरह सश्रम रेंगा करते हैं।

वे जो उत्साह से भरे हैं और कमीने हैं वे उनको अपने झूठ का खौफनाक नंगापन दिखाते हैं अपनी ईर्ष्या की मासूमियत और अपना दोगलापन और अपने लालच की अतृप्त शक्ति। मरी हुई रोशनी की ठण्डी चमक बौद्धिक निर्धनता को खोल कर रख देती है जिसने विजेता की चमक का ठप्पा इन लोगों के आसपास की हर चीज पर लगा रखा है। लेकिन लोगों को इतनी बुरी तरह चौंधिया दिया गया है कि खामोश प्रसन्नता के साथ वे उस दुष्ट मिश्रण को पिए जाते हैं जिसने उनकी आत्मा में जहर भर दिया है। ऊब एक बेढब नृत्य में चलती हुई अपनी नपुंसकता की यातना में मरती हुई।

रोशनियों के शहर की इकलौती अच्छी बात यह है कि आप अपनी आत्मा को मूर्खता की ताकत के प्रति आजीवन नफरत में डुबो सकते हैं।

१९०६

2 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

यार ये गोकीZ का अनुवाद छपने के साथ ही लस्ट फार लाइफ की तरह लोकप्रिय होने वाला है। मैं इसके पुस्तकाकार रूप के इन्तजार में हूं। कम्प्यूटर पर कई बार आंखें ठीक से जुड़ नहीं पातीं।
जियो अशोक महान

Neeraj said...

वे पाप करने के पैसे देते हैं फिर पश्चाताप करते हैं और उसके लिए भी पैसे खर्च करते हैं।

अपनी समझ से भारत के दूसरा अमेरिका बनने का एक छोटा सा उदाहरण देना चाहता हूँ |

नॉएडा के पिज्जा हट में एक दोस्त द्वारा किया गया कमेन्ट,
"यहाँ लड़कियां पहले पैसे खर्च करके, खा खा के, मोटी होती हैं, फिर पैसे खर्च करके, वजन कम करने के लिए, जिम ज्वाइन करती हैं |"