Monday, October 1, 2007

यूसुफ़ के बाद अब पेसोआ के अनुवाद : आज सिर्फ एक ट्रेलर

मुझे उम्मीद है सादी यूसुफ़ जैसे बडे कवि की इन चुनिंदा कविताओं को आपने पसंद किया होगा । सादी की कविताओं के अनुवादों की किताब जल्दी ही 'सदानीरा प्रकाशन' इलाहाबाद से आने वाली है। इस साल के अंत में 'संवाद प्रकाशन' से आनेवाली किताबों में से एक में फर्नान्दो पेसोआ की कई सारी कवितायेँ और थोडा बहुत गद्य होगा। अब मैं आपको अगले कुछ दिनों तक पेसोआ की कुछ महत्वपूर्ण कविताओं से रू-ब-रू कराऊँगा।

फिलहाल पेसोआ की एक कविता पेश है बतौर ट्रेलर:



मुझे भयंकर जुकाम हो गया है

मुझे भयंकर जु़काम हो गया है
सभी जानते हैं कैसे उलट-पुलट जाता है
समूचे ब्रहमाण्ड का कारोबार भयंकर जुकाम से-
आप जीवन से जूझते हैं
और बड़े-बड़े दार्शनिकों को भी छींकें आती हैं।
मैंने नाक पोंछते बिताया है आज का सारा दिन
मेरे सिर में अजीब सा दर्द है
छोटे-मोटे कवि की यह खराब दशा है ना ?
आज में सचमुच ही एक छोटा-मोटा कवि भर हूं
अलविदा, पारियों की मलिका !
तुम्हारे पंख सूरज के बने हुए थे और
मैं यहां पैदल चलता हुआ।
जब तक मैं अपने बिस्तर पर न जा गिरूं मैं ठीक नहीं होऊंगा।
ठीक तो मैं कभी था भी नहीं
सिवाय जब-जब उलटा पसरा रहा ब्रहमाण्ड पर


माफ करना ... क्या भयंकर जुकाम है !
दरअसल यह जिस्मानी है !
मुझे जरूरत है सच की और

एस्प्रिन की।

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