Sunday, December 2, 2007
मेहदी हसन साब की 'इश्क की मार'
कुछ साल पहले मेहदी हसन साब ने ललित सेन के संगीत निर्देशन में 'तर्ज़' नाम से एक अल्बम जारी किया था। इस अल्बम में शायर गणेश बिहारी 'तर्ज़' की ग़ज़लों को हसन साब के अलावा शोभा गुर्टू जी ने भी आवाज़ दी थी। नौशाद साहब की कमेंट्री से सजी इस अल्बम को बहुत ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं हुई लेकिन वैराग्य और मिठास में पगी मेहदी हसन साब की आवाज़ इस सीधी सादी कम्पोजीशन को अविस्मरणीय बना देती है। (बहुत साल पहले यह अल्बम मुझे मेरी अभिनेत्री दोस्त सुनीता चंद उर्फ़ कालू ने दी थी। सारे कबाड़खाने कि तरफ से मैं "थैंक्यू कालू" भी कह देता हूँ लगे हाथ। शुक्रिया इरफान का भी जिन्होंने मुझे lifelogger के बारे में बताया और मैं यह पोस्ट अपने आप लगा पाया।)
(अवधि: ८ मिनट ३४ सेकेंड)
बोल प्रस्तुत हैं:
इश्क की मार बड़ी दर्दीली, इश्क में जी न फंसाना जी
सब कुछ करना इश्क न करना, इश्क से जान बचाना जी
वक़्त न देखे, उम्र न देखे, जब चाहे मजबूर करे
मौत और इश्क के आगे लोगो, कोई चले न बहाना जी
इश्क कि ठोकर, मौत की हिचकी, दोनों का है एक असर
एक करे घर घर रुसवाई, एक करे अफसाना जी
इश्क की नेमत फिर भी यारो, हर नेमत पर भारी है
इश्क की टीसें देन खुदा की, इश्क से क्या घबराना जी
इश्क की नज़रों में सब यकसां, काबा क्या बुतखाना क्या
इश्क में दुनिया उक्बां क्या है, क्या अपना बेगाना जी
राह कठिन है पी के नगर की, आग पे चल कर जाना है
इश्क है सीढ़ी पी के मिलन की, जो चाहे तो निभाना जी
'तर्ज़' बहुत दिन झेल चुके तुम, दुनिया की जंजीरों को
तोड़ के पिंजरा अब तो तुम्हें है देस पिया के जाना जी
- गणेश बिहारी 'तर्ज़'
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4 comments:
अब आप गाने पोस्ट कर सकेंगे बधाई. जय बोर्ची.
उम्दा रचना है. बधाई खोज की लाने के लिए
बहुत सुन्दर रचना... दिन, दिल और तबियत खुश हो गई। धन्यवाद
संभव हो सके तो साथ में बोल (Lyric) भी दिया करें।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
लीजिये साहेबान अब तो मैंने ग़ज़ल के बोल भी लगा दिए।
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