Friday, December 14, 2007

मोरे पिछवरवा


शेफ़ाली भूषण ने जब अपना इंटरप्राइज़ शुरू किया तो उसकी शुरुआत में जो कंम्पाइलेशन्स निकाले उनमें यह पहला अल्बम था. दस ख़ालिस देसी गानों वाली इस सीडी से शेफाली की चयन दृष्टि का बख़ूबी अंदाज़ा लगता है. उन्होंने किसी अंधे शहरी की तरह गाँव के अल्लम-ग़ल्लम संगीत को नहीं सँजोया बल्कि एक निश्चित समझ के साथ संग्रह किया.
श्याम लाल बेगाना, उर्मिला श्रीवास्तव, गोविंद सिंह, आनंदी देवी-संतराम, मनोज तिवारी, बबुनंदन, जवाहर लाल यादव, सुचरिता गुप्ता और मन्ना लाल यादव के अलावा राम कैलाश यादव को भी इसमें सहेजा गया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के समृद्ध लोक गीतों की थाती से यह चयन आपको विविध फॉर्म्स की बानगी देता है. होरी, छपेली, निर्गुन, धोबिया के अलावा इसमें जँतसार का भी एक गीत है. "खाँटी रंग: लोक संगीत के" यही इसे कहा जाना चाहिये.
पैसे कमाने के तो हज़ार रास्ते हैं लेकिन अगर बीट ऑफ़ इंडिया के ज़रिये पैसे भी कमाए जा रहे हों तो मस्त काम है ये. शेफाली और उनके साथियों को शुभकामनाएं.
सुनिये, राम कैलाश का यह छोटा सा गीत.

मोरे पिछवरवा गुलवा के पेडवा...

2 comments:

VIMAL VERMA said...

भई वह मज़ा आ गया, मज़ा तो तब भी आता था जब राम कैलाश जी को इलाहाबाद में हमने बहुत सुना है,राम कैलाश ने दहेज और समाज की कुरीतियों पर खूब लिखा और गाया है,अच्छा काम कर रहे हैं आप लोग, शुक्रिया

Unknown said...

वाह भाई इरफान मजा आ गया. अपने पिटारे से कुछ और निकलते रहिये
धन्यवाद