Thursday, December 13, 2007

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो


कुमार गन्धर्व जी का गाया कबीरदास का एक अदभुत भजन। मालवे में रहने वालों के लिए ज्यादे ही खास।

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।

चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।

उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।

आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो

चार जाने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो

कहत कबीर सुनो भाई साधो
जग से नाता छूटल हो
(३ मिनट ८ सेकेंड)

9 comments:

दिलीप मंडल said...

आपके ब्लॉग का फैन हूं। मैं भी और परिवार के बाकी लोग भी।

पारुल "पुखराज" said...

naayaab cheez sunvaaney ka bahut aabhaar..

मैथिली गुप्त said...

जबर्दस्त आनंदमय प्रस्तुति.

Pratyaksha said...

अगर 'भोला मन जाने अमर मेरी काया ' सुनवा दें कुमार गन्धर्व की आवाज़ में तो कुछ आनंद और आ जाये ।

Yunus Khan said...

आनंद आ गया । आजकल आप कुछ दिलचस्‍प चीजें इफरात में पेश कर रहे हैं । अच्‍छा है ।

VIMAL VERMA said...

दिव्य है !!!

बोधिसत्व said...

लाखों बार आभार.....इस निर्गुन-भजन को सुनाने के लिए

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

भोर के पवन के सामान शीतल और शुद्ध भजन |

चन्द्र प्रकाश दुबे said...

सारगर्भित रचना सुनवाने हेतु आभार.