Sunday, December 16, 2007

वीरेन डंगवाल की 'नाक' और एक नए कबाड़ी का स्वागत

मोहल्ले और रिजेक्ट माल पर अपनी बेबाक और बेलौस टिप्पणियों से अपनी खास जगह बना चुके दिलीप मंडल ने इस कबाड़खाने में आ कर हमारा मान बढाया है। देखिए अब यहाँ वे कैसे कबाड़ से हम सब को रू-ब-रू कराते हैं। उनके स्वागत में अपने प्रिय कवि और मार्गदर्शक वीरेन डंगवाल की कविता 'नाक' यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:

नाक

हस्ती की इस पिपहरी को
यों ही बजाते रहियो मौला!
आवाज़
बनी रहे आख़िर तक साफ-सुथरी-निष्कंप

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