Tuesday, December 4, 2007

डीबी भाई की सुरती का क़माल

डीबी भाई यानी दीनबंधु पंत के सुरती श्लोकों के बारे में अशोक दा पहले ही लिख चुके हैं. उनका एक बहुत पुराना फोटो भी कबाड़खाने में चेपा गया था. पहली नज़र में यकीन नहीं हुआ कि ये अपने डीबी भाई हैं. क्योंकि जब हम डीबी भाई से मिले उनकी दाढ़ी कट चुकी थी. सर पर पगड़ी भी नहीं थी. वो बिल्कुल मॉडर्न कॉमरेड थे. तब वो शायद नैलीताल कैंपस में दूसरा या तीसरा एमए कर रहे थे साथ ही वामपंथी छात्र राजनीति भी. बाद में उन्होंने अल्मोडा कैंपस से लॉ की पढ़ाई भी की थी. इस तरह अशोक दा की पीढ़ी को पार करते हुए डीबी भाई हमारे छात्र जीवन में भी छात्र ही थे।

कबाड़खाने में उनके सुरती श्लोकों को पढ़कर अपना स्मृतितंत्र नहीं जागा था. लेकिन हाल ही में हमसे बहुत पुरानी पीढ़ी के पत्रकार साथी के साथ बैठा था तो वो बातों-बातों में अपने एक साथी के सुरती प्रेम की चर्चा करने लगे. मामला ये था कि दोनों वरिष्ठ किसी अंतर्राष्ट्रीय मीटिंग में हिस्सा ले रहे थे. तब वहां सुरती प्रेमी साथी अपनी हथेली पर घोंटा लगा रहे थे. इतने में एक विदेशी प्रतिभागी उनके पास आया और पूछने लगा- ‘व्हॉट इज दिस?’ उन्होंने जवाब दिया ‘दिस इज एन इंडियन हर्ब व्हिच प्रेवेंट्स अस फ्रॉम स्मॉकिंग.’ विदेशी ने इस ज़ड़ी का इस्तेमाल करने की इच्छा जताई तो वरिष्ठ बोले की इसका असर सिर्फ हिंदुस्तानियों पर ही होता है।

जब बहुत देर तक सुरती पुराण चलता रहा तो मुझे भी अचानक याद आया कि मैंने भी तो एक बार सुरती प्रेम में दीक्षित होने की कोशिश की थी. ठंड के दिन थे. अल्मोड़ा जिले के मनान से लगे एक लंबे-चौड़े बगीचे में हम कुछ दिनों के लिए मार्क्सवाद का पाठ पढ़ने इकट्ठा हुए थे. वहीं थोड़ी फुरसत में जिद करने पर डीबी भाई ने ख़ूब घोंटकर मुझे सुरती खिलाई. वो ज़िंदगी में सुरती का पहला डोज था. सुरती मुंह में डालकर हम एक गाड़ के किनारे-किनारे पगडंगी पर आगे चलने लगे तो मैं धडाम से रास्ते में ही धराशायी. सारे लोग दौड़े-दोड़े आए. मुझे उठाया गया. जिनको पता नहीं था उन्होंने जानना चाहा कि अचानक क्या हो गया. इतने में मैं गोबर से लथपथ हो चुका था।

4 comments:

Ashok Pande said...

क्या भैया भूपेन, तुम भी गच्चा खा गए। वो फोटू डी बी का था ही नहीं। वो असल में मेरा फोटू था। उन दिनों में प्रयाग में सातवी बार कुम्भ करने गया था। वह फोटू मेरे गुरु श्री श्री १००८ पूज्यपाद गपाडेश्वर महाराज, खरहीखांकर गागरीगोल आश्रम वालों के ११० वें नाजायज शिष्य कल्लन कव्वाल ने खेंचा था। कल्लन कव्वाल असल में नेपाल के तत्कालीन राजा के घर काम करने वाली धोबिन के प्रेमी की तीसरी रखैल के चौथे बेटे थे। उनके बाक़ी तीन भाई क्रमशः नवाबगंज, माधोटांडा और पंचपालपुर के सरपंचों के यहाँ पेशेवर पहलवान थे। ... खैर असल में वो फोटू तो मेरा भी नहीं है। जय बोर्ची!

दीपा पाठक said...

अशोक दा फोटो तो वो आप ही का है, फोटोशॉप पर कारीगरी के बाद, आप मानने से इंकार क्यों कर रहे हैं? भूपेन सुरती खाने की कहानी घर पर पता चली या नहीं? अगर हां तो आगे क्या हुआ?

Bhupen said...

मैंने ज़्यादा लोगों को बताया नहीं. सालों बाद अब सार्वजनिक स्वीकार कर रहा हूं कि मैं भी सुरतीखोर रहा हूं.

मुनीश ( munish ) said...

are to kon julam hoi gava bhayya, ram ji ki kirpa se soorat khor to nahi hi hue na!! surti khor ok!! soorat khor rahiyo muh dhoke.