हिन्दी साहित्य में उदय प्रकाश जी का नाम किसी परिचय का मोह्ताज नहीं है. समय समय पर अपने रचनाकर्म से हमें आनन्दित और उत्तेजित करने वाले उदय जी को भारत से बाहर भी जाना और प्रशंसित किया जाता है. विएना में रहने वाली मेरी मित्र बेआत्रीस रिक्रोथ ने जब पिछले साल मुझे उदय जी की कुछ रचनाओं का जर्मन अनुवाद दिखाया था तो जाहिर है मुझे बहुत प्रसन्नता हुई थी. अब जब मेरे इसरार पर उन्होंने कबाड़ख़ाने में आने की सहमति दी है तो आप समझ सकते हैं यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है हम सब के लिए. उन्हीं की एक शुरुआती कहानी का शीर्षक उधार ले कर मुझे यह सूचित करने में हर्ष हो रहा है कि निखालिस सोने से बनी छ्प्पन तोले की करधन का मालिक भी आज से कबाड़ी बन गया है. जय हो.
5 comments:
उदय जी का स्वागत है कबाड़खाने में। और साथ ही आपका भी आभार कबाड़खाने से बेरुखी न दिखाने के लिए।
वो कहीं भी गया, लौटा तो मेरे पास आया.
इक यही बात है अच्छी मेरे हरज़ाई की.
I am very glad that Ashok you are back. Happy New years to you all.
KHUSHAAMDEEEEEEEEEEEED..KHUSHAMDEED!! SVAGAT HAI...SVAGAT HAI.
अरे, पंडा जी पर एक वरिजिनल बन पड़ा है. मुलाहिजा होः
हम कबाड़ी सही कबाड़खाने के,
रूठ जाने का हक़ भी रखते हैं.
जो मनाओगे मान के हमें अपना,
मान जाने का दम भी रखते हैं.
(शेर नाचीज़ का !!!)
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