Tuesday, December 11, 2007

यूं न रह रह के हमें तरसाइए: मास्टर मदन की याद



दो ढाई साल की उम्र से गाना शुरू कर देने वाले और मात्र चौदह साल की नन्ही आयु में स्वर्गवासी हो गए मास्टर मदन की प्रतिभा का लोहा स्वयं कुन्दन लाल सह्गल ने भी माना था। उनका जन्म २८ दिसम्बर १९२७ को जलन्धर के एक गांव खानखाना में हुआ था, जो प्रसंगवश अकबर के दरबार की शान अब्दुर्ररहीम खानखाना की भी जन्मस्थली था । ५ जून १९४२ को अपनी असमय मौत से पहले उनकी आवाज़ में आठ रिकार्डिन्ग्स हो चुकी थीं।आप के लिये यह खास प्रस्तुति: मास्टर मदन की आवाज़ में दो गज़लें।

ये गज़लें गुलज़ार और जगजीत सिंह की कमेन्ट्री के साथ कुछ साल पहले एच एम वी द्वारा 'फ़िफ़्टी ईयर्स आफ़ पापुलर गज़ल' के अन्तर्गत जारी हुई थीं। जगजीत सिंह के मुताबिक मास्टर मदन सिर्फ़ तेरह साल जिए लेकिन यह सत्य नहीं है। इस के अलावा इस अल्बम में बताया गया है कि इन गज़लों का संगीत मास्टर मदन का है। यह भी सत्य नहीं है। ये गज़लें १९३४ में रिकार्ड की गई थीं यानी तब उनकी उम्र ७ साल थी। असल में इन गज़लों को १९४७ में 'मिर्ज़ा साहेबां' फ़िल्म का संगीत देने वाले पं अमरनाथ ने स्वरबद्ध किया था। सागर निज़ामी की इन गज़लों में मास्टर मदन की आवाज़ का साथ स्वयं पं अमरनाथ हार्मोनियम पर दे रहे हैं। तबले पर हीरालाल हैं और वायलिन पर मास्टर मदन के अग्रज मास्टर मोहन।
यूं न रह रह के हमें तरसाइए (३ मिनट १८ सेकेंड)



हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे (३ मिनट १० सेकेंड)

3 comments:

Satyendra Prasad Srivastava said...

अच्छी जानकारी दी है आपने। बेहतरीन और दुर्लभ ग़ज़ल सुनाने के लिए धन्यवाद

इरफ़ान said...

Great hai Guru. Master Madan ki jin aath ghazalon kee baat hotee hai ve kahaan hain?

VIMAL VERMA said...

वाकई कमाल की आवाज़ है, उन्हें भी मेरा सलाम जिन्होने आजतक इस आवाज़ को संजो कर रखा है,आपका भी शुक्रिया जो आपने हमे मास्टर मदन के बारे में बताया,