Tuesday, December 11, 2007

फिर से एहसास ने पहना है बेहिसी का लिबास : मीनाकुमारी की नज़्म


चलिए आज आप को ले जाया जाए एक बहुत पुराने सफर पर। मीनाकुमारी की आवाज़ में सुनिए उनकी एक नज़्म 'अकेलापन'। भारतीय फिल्मों की इस नायाब ट्रेजेडी क्वीन का असली नाम महजबीन बानो था। उनके पैदा होते वक़्त उनके अब्बू के पास उन की परवरिश तक को पैसा न था और वे उन्हें एक अनाथालय में छोड़ आये थे हालांकि वहां मेह्जबीन फ़क़त कुछ घंटे ही रहीं। मोहब्बत से भरे उन के संघर्षरत पिता उन्हें वापस ले आये थे। जीवन के आखिरी दिनों में, इतनी शोहरत पा लेने के बावजूद मीनाकुमारी अकेली थीं। निहायत अकेली। शराब में डूब चुकी उनकी जिंदगी 'पाकीजा' जैसी अविस्मरणीय फिल्म के तीन हफ्तों बाद ख़त्म हो गई। अस्पताल का बिल तक चुकाने को उनके बैंक अकाउंट में पैसा नहीं बचा था। मीना कुमारी शायरी करती थीं और यह गुलज़ार के कारण संभव हुआ की उनकी शायरी न सिर्फ आज हमें सुनने को मिलती है बल्कि वह 'हिंद पॉकेट बुक्स' से गुलज़ार द्वारा ही संपादित 'मीनाकुमारी की शायरी' के नाम से करीब ४० साल पहले छाप चुकी है। कुल चालीस साल का संक्षिप्त जीवन जिया उन्होंने लेकिन टूटे दिलों पर उनका राज़ चालीस सदियों तक चलता रहेगा।

(१ मिनट १ सेकेंड)

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