बात बहुत पुरानी
नहीं है. सन २००६ में फ़्रैंकफ़र्ट पुस्तक मेले के दौरान मुझे आस्ट्रियाई रेडियो ओ.
आर. एफ़. द्वारा एक इन्टरव्यू के लिए बुलावा आया. इस निमन्त्रण की वजह यह थी कि
उक्त मेले में भारत को 'गैस्ट आफ़ आनर' का दर्ज़ा मिला
था.
यह एक बेहद
अनौपचारिक वार्ता थी जिस में मेरे साथ एक प्रौढ़ बंगाली साहित्यवेत्ता मौजूद थे.
शुरुआती सवालों के बाद भारतीय साहित्य की 'एक्सपर्ट'
इन्टरव्यू लेने वाली मोहतरिमा ने मुझसे सलमान रश्दी के उस वक्तव्य
पर टिप्पणी करने को कहा जिसमें वे बताते हैं कि प्रभावी भारतीय साहित्य की रचना
केवल अंगरेज़ी में संभव है।
इसके पहले कि
मैं घबरा जाता मैंने उस से पूछा कि उसे हिन्दी में लिखने वाले कितने साहित्यकारों
के नाम पता हैं। जाहिर है उस का सारा भारतीय साहित्य का ज्ञान रश्दी,
अरुंधती, विक्रम, अमिताव,
उपमन्यु और निस्संदेह टैगोर तक सीमित था। सवाल चालीस करोड़ लोगों की
निर्धन भाषा का था सो मैंने डरते डरते निराला और मुक्तिबोध का नाम ले लिया।
इन्टरव्यू को हवा में टंगता देख उन मोहतरिमा ने मुझी से इन महान कवियों के बारे
में कुछ बताने को कहा।
निराला और
मुक्तिबोध के बारे में तो मैंने उन्हें नहीं बताया, हां उन्हें यह राय ज़रूर दी कि वे अगली बार जब इन्डिया आएं तो हैबिटैट
सेन्टर और अन्य भद्र केन्द्रों से बाहर जाकर भारत की तरफ़ रुख करें या अपना पेशा
बदल लें। मुंह में सोने-चांदी के चम्मच ले कर पैदा हुए तथाकथित भारतीय लेखकों की
ऐसी तैसी कर पाने की तो मेरी कूव्वत न थी पर भारत की आर्थिक - सामाजिक और
साहित्यिक निर्धनता पर मैंने दो चार बातें बताईं।
लेकिन इन्टरव्यू
का समय सीमित था। उक्त मोहतरिमा ने मुझसे 'इन
शार्ट' यह बताने की गुज़ारिश की कि हिन्दी लेखक लोकप्रिय
क्यों नहीं हैं। "क्योंकि हिन्दी के किसी भी 'बड़े'
लेखक में इतनी कूव्वत नहीं कि पद्मा लक्ष्मी जैसी माडल को 'सैट' कर सके या न्यूयार्क के होटेल वाल्डोर्फ़
एस्टोरिया के व्यक्तिगत स्विमिंग पूल में तैरते हुए हाथ में फ़्रैंच वाइन थामे
छ्त्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के नक्सलवाद पर दो घंटे का इन्टरव्यू दे सके।"
आप लोगों की क्या राय है?
3 comments:
bhot maulik prasna hai bandhu jo jaane kab se maulsiri ke vriksh ki saghan-ghan chhaya me hindi valon ki baat joh raha tha, nau nau aansoo ro raha tha. javaab talashna hoga. vaise hindi lekhkon me zinc evam vitamin-c ki nyunta ek kaaran bataya gaya hai aur main to isiliye apki di tikiyon ka gungune jal se nitt nem se sevan kar raha hoon. astu!
गुरु जे बात तो इनने सही कही
हिन्दी वाले की इत्ती कहां बिसात!
Maulik prashna abhi bhi vahin hai.
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