एक समय था जब हम कोई थियेटर वर्कशॉप किया करते थे और उस समय उस हॉल में जितने भी कलाकार थे उनकी ऊल जुलूल हरकतों को देखकर लगता था कि दिमागी रूप से खिसके कुछ लोगों का जमावड़ा है,कोई बाहरी देखे तो झट्के से वो इनसबको पागल तो समझ ही लेगा,वैसे भी ब्लॉग जगत में इस तरह के पागलों की कमी भी नहीं है, वैसे ये हमेशा से मेरे साथ तो कम से कम रहा ही है,कि किसी ऐसे व्यक्ति को जो गली मोहल्लों चौराहों ,इस नुक्कड़ से उस नुक्कड़ पर आपको, हमेशा दिख ही जाता है जो महीनों से नहाया नही है कुछ हाथ में एक गठरी है ,जिसमें उसके कुछ ज़रूरी सामान बंधे हैं,और नुक्कड़ के कूड़े से कुछ ना कुछ हरदम अपने लिये तलाशता,उसके बाल सुतलियों में बंटे,जिसकी कम से कम उसे परवाह नहीं,पता नहीं वो सोता भी है या नहीं पर ऐसे प्राणी को देखकर उनको जानने की उत्सुकता मन में हमेशा से रही है पर कभी सफल नहीं हो पाया,
कुछ ऐसा भी कि ऐसे आदमी को किसी भीड़ से अटे ट्रैफ़िक को बीच सड़क पर खड़े होकर संचालित करते देखा है, जाम हुए रास्ते में उसे कोई भाव भी नही दे रहा किसी को उसकी ज़रा भी चिन्ता नहीं ,जिसकी उसे चिन्ता भी नहीं है और वो अपनी तरफ़ से सब कुछ ठीक करने की कोशिश में लगा है, उसके चेहरे पर खीज भी झलक रही है
,अंग्रेज़ी बोलते पागल को तो अनेकों बार देखा ही है, और ऐसा आदमी किसी ढाबे पर खड़ा हो जाय तो तो खाने को कुछ मिल ही जाता है, और इसी तरह के व्यक्ति पर मोहल्ले के बच्चों को लिहो लिहो करते हुए अपने आपको बचाते हुए भी देखा है,
एक बार हम बनारस में किसी जगह नुक्कड़ नाटक कर रहे थे, नाटक खत्म करने के बाद हम दर्शकों से बात चीत में लगे थे थे,सब अपनी अपनी बातें रख रहे थे,उसी समय एक इसी तरह का मैला कुचैला आदमी, जो अपनी गोद में बठे कुत्ते को प्यार से सहला रहा था, उसने ज़ोर से कहा ’ कुछ नहीं होगा? मैने ये कहते सुन लिया था सो मैं उसके पास गया और मैने पूछा ’क्यों चचा, क्यों नही होगा ? आदमी कुछ भी ठान ले, तो वो उसे हासिल तो कर ही सकता है हां देर भले लग जाय.
तो उस आदमी ने कहा ,इस देश में ७४ का आंदोलन सही आंदोलन था, पर जो उस आदोलन को चला रहे थे उन्होने अपना झंडा जे पी को देकर गलत किया था,क्या हुआ उस आंदोलन का? आज जिनके खिलाफ़ लड़ रहे थे वही घूम फिर कर सत्ता पर काबिज़ हैं, तुम भी कम से कम जेपी जैसे लोगों को झंडा मत थमा देना, भईया इसीलिये मैं जानवर से बहुत प्यार करता हूं कम से कम ये धोखा तो नहीं देता उलटे इतना प्यार करते है कि मनुष्य इसकी बराबरी नही कर सकता, मैं ऐसे दीन हीन चेहरे से ऐसे शब्द सुनकर चौंक गया था,
मेरे दिमाग में उस समय कुछ सूझा भी नही पर आज कुछ ऐसे ही लोगों के बारे लिखते हुए मेरे कबाड़्खाने का ढ्क्कन खुल गया था और ये बात उसी कबाड़्खाने से है जो बरसों से बंद पड़ा था .
अभी मै एक गीत आपको सुनाना चाहता हूं, जो शायद ऐसे लोगों पर लिखा इस तरह का अनूठा गीत है, मुश्किल मेरी ये है कि मैं भी भाव ही समझता हूं, , पर आप सुनिये और किसी समझदार व्यक्ति जो बंगला जानता हो उससे इसका अर्थ समझ लिजियेगा ये रचना कबीर सुमन की है जो पहले सुमन चक्रवर्ती के नाम से जाने जाते थे , कब अपना नाम बदल लिया मुझे मालूम नही,पर ये गाना उनको समर्पित जिन्हें दुनियाँ पागल समझती है !!!
पागोल साँप लूडो खेलेछे बिधातार शोंघे....{ कबीर सुमन }
6 comments:
लेख भी अच्छा लगा, गाना भी। एक वक्त था, जब सुमन चक्रवर्ती गाने के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर भी मोर्चा संभाले दिखते थे। कोलकाता छोड़े 7-8 साल हो गए, इसलिए पता नहीं अभी वो क्या कर रहे हैं। केवल गाना ही गा रहे हैं या ....
कहां ला के पटक मारा विमल भाई. पन्द्रह साल पहले. अब लगे हाथों 'आमादेर जोन्नो' और 'ऐक कप चाए' (उर्फ़ 'तोमाके चाई') भी सुना दीजिए. जहां तक मेरी सूचना है सत्येन्द्र जी, सुमन अब वो नहीं रहे जो कहते थे: "शिन्थेशाइजरेर टापुर टुपुर, शुमोन चोटोज्जी एक्के शूर नाईं". मैं गलत भी हो सकता हूं, पर विमल भाई, बन्दे को निराश न कीजिएगा.
vimal ji aya kijiye isi tarah .
सुमन के बारे आपकी बातें मुझे चकित तो नहीं कर रहीं,मुझे लगता है किसी को भी उसकी रचना से तौलिये,निजी तौर पर देखने लग जाएंगे तो बहुत से कवि या साहित्यकारों की बाट लग जाएगी,निज को निज ही रहने दिया जाय, अशोक भाई आपकी फ़र्माइश ज़रूर पूरी की जाएगी थोड़ा समय दिजिये!!हां अगर गाना छोड़कर सुमन कुछ और करने लगे है तो अफ़सोस है !!
vimal bhai....aisa hee kuchch dikhane/kehne ki koshish ki hai humne apne natak 'ilhham' mein. 17th january ko nsd mein 2 show hain...aap bhi ayen...mujhe lagta hai apko natak pasand aayega.
ashish
ilhaam ki details ke liye link per click kijiye.
http://www.himalayanvillage.com/ilhaam/
Post a Comment