हम बेहद भाग्यशाली हैं
हम बेहद भाग्यशाली हैं
कि हम ठीक ठीक नहीं जानते
हम किस तरह के संसार में रह रहे हैं
आपको यह जानने के लिए
बहुत, बहुत लम्बे समय तक जीना होगा
निस्संदेह इस संसार के
जीवन से भी ज़्यादा लम्बे समय तक
चाहे तुलना करने के लिए ही सही
हमें दूसरे संसारों को जानना होगा
हमें देह से ऊपर उठना होगा
जो बस
बाधा पैदा करना
और तकलीफ़ें खड़ी करना जानती है
शोध के वास्ते
पूरी तस्वीर के वास्ते
और सुनिश्चित निष्कर्षों के वास्ते
हमें समय से परे जाना होगा
जिस के भीतर हर चीज़ हड़बड़ी में भागती और चक्कर काटती है
उस आयाम से
शायद हमें त्याग देना होगा
घटनाओं और विवरणों को
सप्ताहों के दिनों की गिनती
तब अपरिहार्य रूप से
अर्थहीन लगने लगेगी
पोस्टबाक्स में चिट्ठी डालना लगेगा
मूर्खतापूर्ण जवानी की सनक
"घास पर न चलें" लिखा बोर्ड लगेगा
पागलपन का लक्षण
1 comment:
विस्वावा शिंबोर्स्का की कुछ कविताएं मैंने मंगलेश जी के सौजन्य से पहले भी पढ़ी हैं। कितनी आसानी से वे विज्ञान की आधुनिकतम अवधारणाओं से निकलकर रोजमर्रा जीवन के ऊबड़-खाबड़पन तक टहल आती हैं! अपने जोड़ीदार ताद्यूश रोजेविच और अन्य पोलिश महाकवियों की तुलना में वे मुझे सबसे कम आध्यात्मिक लगती हैं लेकिन ज्ञान और संवेदना, दोनों में ही उनकी समान गति और सबसे बढ़कर उनकी असाधारण संबोधन क्षमता उन्हें आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों ही मिजाज के लोगों तक समान सहजता के साथ पहुंचा देती है।
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