अच्छा लग रहा है कि देर रात आने वाले पति के साथ उसके दोस्त के बारे में सिर्फ दिमाग मे कूड़े वाली चिंता ही लड़की को परीशां कर रही है कोई और नहीं। सच कह रहा हूं न.....?
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है
अकेली इंडिया गेट तक घूमने कैसे जाए
अकेली बाजार से साग -सब्जियां कैसे लाए
अकेली सारा दिन कैसे रहे एक कमरे में बंद
अकेली कैसे ढोलक पर गीत गाए
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है
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शौहर दस बजे रात को दफ्तर से आता है
अक्सर ही साथ में दोस्त कोई लाता है
करता रहता है मोटी किताबों की भारी भारी बातें
इतना कूड़ा दिमाग में कैसे समाता है
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है
इतनी तेज़ी में कहां भागते हैं सड़को पर इतने लोग
जीवन में मिलता नहीं, कहीं रुकने का संयोग
टैक्सी के नीचे एक बूढ़ी औरत दब जाती है
मौत ही दवा है, इतना कठिन है शहर का रोग
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है
आओ, आज घर में ही बैठो, कुछ बात करें
टप्पे गा-गाकर आंगन में फूलों की बरसात करें
लोग पागल कहेंगे, कहे, अपना क्या बिगड़ता है
गीतों की शादी रचाएं, प्यार की बारात करें
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है
-जगतार पपीहा
1 comment:
जबरदस्त कविता है। खासकर आखिरी पद।
आओ, आज घर में ही बैठो, कुछ बात करें
टप्पे गा-गाकर आंगन में फूलों की बरसात करें
लोग पागल कहेंगे, कहे, अपना क्या बिगड़ता है
गीतों की शादी रचाएं, प्यार की बारात करें
लुधियाने की लड़की बहुत परीशान है।।
वैसे रब्बी शेरगिल ने जुगनी करके एक गाना गाया है जिसमें भी कुछ इसी तरह के भाव हैं।
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