Sunday, February 24, 2008

मर्लिन मनरो के लिए प्रार्थना



सुबह आपने तथाकथित सभ्‍य समाज की एक गिरी हुई स्‍त्री मर्लिन मुनरो की आवाज में चार गीत सुने और अर्नेस्‍तो कार्देनाल की कविता भी। उस कविता का हिंदी अनुवाद यहां प्रस्‍तुत कर रही हूं। मेरी भी तथाकथित सभ्‍य दुनिया ने उसकी ऐसी ही छवि मेरे दिमाग में बना रखी थी, किसी पोर्न स्‍टार जैसी। पांच साल पहले तक, जब तक मैंने मर्लिन की जीवनी नहीं पढ़ी थी। आज उस स्‍त्री ही वह छवि मेरे लिए फख्र की बात है। फिलहाल तो इस कविता के रूप में कबाड़खाने में मेरी पहली पोस्‍ट।

परमेश्‍वर
शरण में लो इस लड़की को, जो मर्लिन मनरो के नाम से
जानी जाती है दुनिया में
गो यह न था उसका नाम
(गो तुम जानते हो उसका सही नाम, नौ बरस की उमर में
बलात्‍कार का शिकार हुई अनाथ बाला का
दुकान में काम करने वाली उस लड़की का, जिसने आत्‍महत्‍या की कोशिश की
सोलहवें बरस में)
जो अब तुम्‍हारे सामने बिना मेकअप आ जाती है
प्रेस एजेंट के बिना
अने ऑटोग्राफर के बिना
बिना ऑटोग्राफ देते
वाह्य अंतरिक्ष के अधिका का सामना करते अंतरिक्ष यात्री के मानिंद

जब वह बच्‍ची थी तब सपने में देखा था उसने कि वह नंगी खड़ी है चर्च
में (टाइम्‍स के अनुसार)
साष्‍टांग दंडवत करते, धरती पर सिर टेके अरबों लोगों के सामने खड़ी
उसे चलना पड़ता था अपने पंजों पर, सिर बचाने के लिए
तुम तो बेहतर जानते हो हमारे सपनों को, मनोविज्ञानी चिकत्सिक से
चर्च, घर या गुफा बस प्रतिनिधित्‍व करते हैं गर्भ की सुरक्षा का
लेकिन उससे कुछ ज्‍यादा भी......
सिर प्रशंसक है तो यह साफ है
(वह समूह सिरों का परदे की निचली कोर के अंधेरे में)
लेकिन मंदिर 'ट्वेंटिएथ सेंन्‍चुरी फॉक्‍स' का स्‍टूडियो नहीं है
मंदिर सोने और संगेमरमर का, मंदिर है उसके तन का
जिसमें कोड़ा लिए खड़ा है मर्दानगी का सूर्य
हंकलाता 'ट्वेंटिएथ सेंन्‍चुरी फॉक्‍स' के दलालों को जिनने बना दिया तेरे
घर को अड्डा चोरों का
परमेश्‍वर,
रेडियोएक्टिविटी और पाप से दूषित इस दुनिया में
मुझे भरोसा है कि आप दुकान में काम करती लड़की को नहीं कोसेंगे
जो (किसी दूसरी ऐसी लड़की की तरह) सपना देखती थी 'स्‍टार' बनने का
उसका सपना हो गया सच (टेक्निकल सच्‍चाई)
उसने तो बस हमारी स्क्रिप्‍ट के अनुसार किया
हमारी जिंदगियों जैसा, लेकिन वो अर्थहीन था
क्षमा करो प्रभु, उसको और क्षमा करो हम सबको
हमारी इस बीसवीं सदी के लिए
और उस विराट प्रोडक्‍शन के लिए जिसके भागीदार हैं हम सब
वह भूखी थी प्‍यार की और हमने दी उसे नींद की गोलियाँ संत न हो पाने का अपना शोक मनाने के लिए उनने भेजा उसे मनोविश्‍लेषक के पास याद करो प्रभु कैमरे के प्रति उसका निरंतर बढ़ता भय और घृणा ‘मेकअप’ के प्रति (बावजूद उसकी हर सीन के लिए नया ‘मेकअप’ करने की जिद के) और कैसे बढ़ा वह आतंक
और कैसे बढ़ी उसकी आदम स्‍टूडियो में देर से आने की

किसी और मनिहारिन की तरह सपने देखती थी वह ‘तारिका’ बनने के
उसकी जिंदगी वैसे ही अयथार्थ थी जैसे कोई सपना जिसे बांचता है विश्‍लेषक और दबा देता है फाइल में
उसके प्रेम चुंबन थे मुंदी आंखों वाले
जो आंखें खुलने पर
दिखे कि खेले गए थे वे ‘स्‍पॉटलाइटों’ तले जो
बुझाई जा चुकी हैं और कमरे की दोनों दीवारें (वह एक ‘सेट’ था) हटाई जा रही हैं डायरेक्‍टर अपनी डायरी लिए जा रहा है दूर और ‘दृश्‍य’ बंद किया जा रहा है ठीक-ठाक
या जैसे किसी नौका पर भ्रमण, चुंबन सिंगापुर में, नाच रियो में विण्‍डसर के ड्यूक और डचेज की बखरी का स्‍वागत-समारोह
देखा गया किसी सस्‍ते कमरे के ऊबड़-खाबड़ उदास माहौल में
उन्‍हें मिली वह मरी, फोन हाथ में लिए जासूस पता नहीं लगा सके कभी उसका जिसे करना चाहती थी वह फोन वो कुछ ऐसा हुआ जैसे किसी ने नं. मिलाया हो अपने एकमात्र दोस्‍त का
और वहां से- टेप की हुई आवाज आई हो – ‘रांग नं.’
या जैसे गुंडों के हमले से घायल, कोई पहुंचे काट दिए गए फोन तक,
परमेश्‍वर चाहे जो कोई हो
जिससे वह करना चाहती थी बात लेकिन नहीं की (और शायद वह कोई न था या कोई ऐसा, जिसका नाम न था लॉस एंजेलस की डायरेक्‍टरी में)
परमेश्‍व, तुम उठा लो वह टेलीफोन।

-- अर्नेस्‍तो कार्देनाल
(अनुवाद : मंगलेश डबराल)

4 comments:

Ashok Pande said...

धन्यवाद मनीषा! एक बेहतरीन कविता का बेहतरीन अनुवाद हम तक पहुंचाने के लिए.

Anonymous said...

अगर तुम इसे ही कबाड़ कहते हो तो यह बताओ कि कबाड़ है क्या? जिसको जैसी ज़िन्दगी मिली लेकिन वह ज़िन्दगी है। किसी की ज़िन्दगी न हम लिख रहे हैं न ही मिटा रहे हैं। इसलिए किसी का कर्म अच्छा है या बुरा यह कैसे निश्चित कर सकते हैं। ईश्वर ने स्वयं कभी नहीं बताया, अच्छा क्या है और बुरा क्या? जिसने सुना, जो भाया, बक दिया और तीसरे ने गीता या बाइबिल का सार बना दिया।

इरफ़ान said...

अनुवाद हालाँकि और अच्छा हो सकता था लेकिन मर्लिन पर यह कविता उनके बारे में एक नई दृष्टि देती है. बधाई.

Kumar Ambuj said...

संयोग से आज इस कविता तक पहुँचा। लेकिन भाई, मंगलेश जी ने इसका अनुवाद अच्‍छा नहीं किया। प्रवाहहीनता तो है ही, कई, जादातर छोटी-छोटी गलतियां भी रह गई हैं। अंग्रेजी में आप इस कविता को पढ़ेंगे तो सहमत होंगे। बहरहाल, कुछ न होने से बेहतर है कि यह है।