Wednesday, March 19, 2008
'आम्र बौर का (एक भोजपुरी) गीत' : तलत महमूद और लताजी की आवाज में
....और मैं कितना चाह कर भी तुम्हारे पास ठीक उसी समय
नहीं पहुँच पाती जब आम्र मंजरियों के नीचे
अपनी बाँसुरी में मेरा नाम भर कर तुम बुलाते हो!
उस दिन तुम उस बौर लदे आम की
झुकी डालियों से टिके कितनी देर मुझे वंशी से टेरते रहे....
धर्मवीर भारती की अद्वितीय पुस्तक 'कनुप्रिया'का ऊपर दिया गया अंश मुझे तलत महमूद और लताजी की आवाज में एक पुराना भोजपुरी गीत सुनते हुए बारबार याद आता रहा.'शब्दों का सफर' वाले भाई अजित वडनेरकर जी को पत्र लिखते समय मैंने 'कनुप्रिया' का 'आम्रबौर का गीत' वसंत की सौगात के रूप में नत्थी कर दिया था। उनका बड़प्पन और मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य है कि अजित जी ने बेहद खूबसूरती और शानदार तरीके से इसे अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर दिया है.
....लाले-लाले ओठवा से बरसे ललइया
हो कि रस चूवेला
जइसे अमवां क मोजरा से रस चूवेला....
भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर की फिल्म 'लागी नाहीं छूटे रामा' का यह गीत मेरे लिये अविस्मरणीय है किन्तु वसंत में यह अधिक परेशान करता है.आम के वृक्षों पर आने वाले बौर, फल और स्वाद के उत्स तथा आगमन का संकेत तो देते ही हैं साथ ही वे वसंत की ध्वजा फहराते हुए भी आते हैं,जिसे हमारे इलाके की भाषा में 'मौर' 'मउर'या 'मोजरा' कहा जाता है.याद करें, पूर्वांचल में विवाह के समय 'लड़का'(वर)सिर पर जो मुकुट धारण करता है उसे भी 'मउर' ही कहते हैं.'सिरमौर' शब्द की व्युत्पत्ति भी हमें खीचकर उसी आम्र-बौर तक ले जाती है जिसे स्पर्श कर खुमार तथा मादकता से भरी बौराई हवा को मेरे घर की कांच लगी खिड़कियां फिलहाल रोक पाने का हौसला और हिम्मत गवां चुकी हैं. असल बात तो यह है कि उसे रोकना भी कौन कमबख्त चाहता है!
'लाले-लाले ओठवा से बरसे ललइया' मूलतः छेड़छाड़ का गीत है;लुब्ध नायक और रूपगर्विता नायिका के बीच की चुहल और छेडछाड़ का गीत। मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे मादक शब्दों को संगीतबद्ध किया है चित्रगुप्त ने और स्वर है तलत और लताजी का. तो सुनते हैं भोजपुरी सिनेमा के सुनहरे दौर का यह फगुनाया गीत-
(फोटो- tribuneinda से साभार)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
वाह भाई!
मजा आ गैल. ऐसहीं लगावत रहीं.
Post a Comment