Friday, April 18, 2008

त्रिवेणीः फैज की नज्म,मोमिन की गजल और नूर का स्वर


इस त्रिवेणी में स्नान किया
कल रात काफी देर तक
जब तक कि नींद ने आ नहीं घेरा
और आज दिन भर तमाम कामकाज के बावजूद॥


कविताओं की कोई खास समझ नहीं
काव्यशास्त्र की किताबें कोई खास मदद नहीं करतीं इस बाबत
जिंदगी ही दिखाती-बताती है कविता की राह
संगीत के लय-सुर-ताल को पकड़ने की तमीज नहीं आई
महसूसता हूं बस,केवल आनंद और आह्लाद
अक्सर,कभी-कभी अवसाद में
डुबोने और उबारने का रास्ता भी लगता है यह सब
बस अच्छा-सा लगता है
कविता और संगीत की नदी में अवगाहन...

आप भी सुनें-गुनें
और ठीक समझें तो राय दें
बाकी सब ठीक...


वो जो हममें तुममें करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

वो नए गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हिकायतें
वो हरेक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयान से पहले ही रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

सुनो जिक्र है कई साल का कोई वादा मुझसे था आपका
वो निबाहने का जिक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

कभी हममें तुममें भी चाह थी कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूं मोमिन-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो ।

4 comments:

Ashok Pande said...

बढ़िया नदियां बहा दीं आपने सिद्धेश्वर बाबू!

पारुल "पुखराज" said...

वाह! बस वाह!

डॉ .अनुराग said...

bahut badhiya...

Manish Kumar said...

बढ़िया पेशकश !