इस त्रिवेणी में स्नान किया
कल रात काफी देर तक
जब तक कि नींद ने आ नहीं घेरा
और आज दिन भर तमाम कामकाज के बावजूद॥
कल रात काफी देर तक
जब तक कि नींद ने आ नहीं घेरा
और आज दिन भर तमाम कामकाज के बावजूद॥
कविताओं की कोई खास समझ नहीं
काव्यशास्त्र की किताबें कोई खास मदद नहीं करतीं इस बाबत
जिंदगी ही दिखाती-बताती है कविता की राह
संगीत के लय-सुर-ताल को पकड़ने की तमीज नहीं आई
महसूसता हूं बस,केवल आनंद और आह्लाद
अक्सर,कभी-कभी अवसाद में
डुबोने और उबारने का रास्ता भी लगता है यह सब
बस अच्छा-सा लगता है
कविता और संगीत की नदी में अवगाहन...
आप भी सुनें-गुनें
और ठीक समझें तो राय दें
बाकी सब ठीक...
और ठीक समझें तो राय दें
बाकी सब ठीक...
वो जो हममें तुममें करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वो नए गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हिकायतें
वो हरेक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो हरेक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयान से पहले ही रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
तो बयान से पहले ही रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
सुनो जिक्र है कई साल का कोई वादा मुझसे था आपका
वो निबाहने का जिक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
वो निबाहने का जिक्र क्या तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
कभी हममें तुममें भी चाह थी कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
कभी हम भी तुम भी थे आशना तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूं मोमिन-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
मैं वही हूं मोमिन-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
4 comments:
बढ़िया नदियां बहा दीं आपने सिद्धेश्वर बाबू!
वाह! बस वाह!
bahut badhiya...
बढ़िया पेशकश !
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